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________________ अधिकार ] यतिशिक्षा ... [५६१ वाले अनिवार्य सहचारीभाव हैं। इनका त्याग होना महान् पुण्यका उदय है । गुरुमहाराजकी महान् कृपाके होनेपर ही सदुपदेशरूप धारा इस जीवरूप क्षेत्रमें प्रवाहित होती है जिससे मुनिपनका उद्गम. होता है, और उक्त अपमानके स्थानोंका त्याग हो सकता है । ऐसे महान लाभके प्राप्त होनेपर जीव शास्त्राभ्यास करता है, पंडितपद आदि पदवियें प्राप्तकर पंडितके नामसे संसारमें प्रसिद्ध होता है. और व्याख्यान झाड़ने लगता है। योग्य जीव उपदेश सुनकर दान-शीलादि तथा पूजा-प्रभावनादि धार्मिक कार्य करते हैं परन्तु यह जीव बेचारा धर्मक्रियामें भी संसारकी बुद्धि रखता है, अर्थात् संसारिक भाव-पौद्गलिक भावका त्याग नहीं कर सकता है । इसको उस समय अहंकार आता है कि अहो ! मेरे उपदेशसे ये धर्म करते हैं, मेरी आज्ञाको मानते हैं, मैं बादशाह हूँ आदि। __यही तेरी आज्ञाका पालन करते हैं ऐसा प्रतीत होता है, परन्तु वास्तवमें ऐसा नहीं है। सिपाही वारंट लेकर भावे तो उसके आधीन होनेवाला प्राणी सिपाहीके हुक्मके आधीन नहीं होता है, परन्तु मजिस्ट्रेटद्वारा निकले हुए वारंटके आधीन होता है। इसीप्रकार तेरे पास धर्मका वारंट (जिनेश्वर महाराजके वचनरूप तुगमा और उनसे कहे अनुसार पहना हुआ वेशरूप युनिफोर्म ) है उसीके वे आधीन होते हैं, और उसीका आदर करते हैं। इसमें यदि तेरे निजके मानकी मान्यता होती तो ये दोनो जब तेरे पास नहीं थे उस समयकी तेरी पहिली स्थितिका स्मरण कर ।” १ प्रत्येक पुलिस ( Police ) या लश्कर में रहेनवाले द्वारा पहिना जानेवाला एकसा ड्रेस ( Uniform )
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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