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________________ अधिकार] यतिशिक्षा [ ५१९ प्राणी उसके मोहमें फँसते हैं, फिर भी यदि वह सोना एक जहाजमें भरदिया जाय तो वह जहाज़ भी डूबता है और उसमें बैठनेवालों को भी डूबोता है, इसीप्रकार परिग्रह भी प्रिय जान पड़ता है, बाह्यरूप देखकर उससे मोह उत्पन्न होता है और विशेषतया धर्मनिमित्त संग्रह कराता हुआ परिग्रह तो अल्पमात्र भी खराब है यह कितनी ही बार बिनाविचार किये समझमें नहीं आ सकता है, फिर भी यदि यतिजीवनरूप जहाजमें इन बाहरसे सुन्दर दिखाई देनेवाले परिग्रहरूप स्वर्णका अत्यन्त भार भरदिया जाय तो यह चारित्ररूप नौका संसारसमुद्रमें विलीन हो जाती है और इसके आश्रित मूढ़ प्राणी भी साथ ही साथ उस विशाल समुद्रके वक्षस्थलमें सर्वदाके लिये मन्त- . र्ध्यान हो जाते हैं। इसप्रकार जीव अात्मवंचन करता है। यह इसे धर्म समझता है किन्तु उसे यह भान नहीं है कि इससे अपने आपको ममत्व होता है । पुस्तकोंका बड़ा पुस्तकालय रखों या भण्डार रक्खों तो उससे यहाँ कुछ भी प्रयोजन नहीं है । यहाँ कहनेका यह तात्पर्य है कि किसी भी वस्तु पर धर्म के नामसे हृदयमें मेरेपनकी बुद्धिका-अहंभावका त्याग करना चाहिये, जबतक इसप्रकार नहीं किया जायगा तबतक यह नहीं कह सकते कि तुम परिग्रहसे मुक्त हो । अलबत्त, अपने पास पैसे रखना, अथवा अमुक निमित्तकी मनमें कल्पनाकर श्रावकके यहाँ जमा रखना, या शास्त्रके आशिकी अवहेलना कर विना उत्सर्ग अपवादके १ संयमके निर्वाहके लिये काममें आनेवाले वस्त्रपात्रादिकको ' उपकरण' कहा जाता है और जो व्यर्थ ममताबुद्धिसे एकत्रित किये गये हो उन उपकरणोंको ‘ अधिकरण ' कहे जाते हैं ( यतिदिनचर्या) इसी हेतुसे वैसे अधिकरणोंको यहाँ अत्यन्त भाररूप कहे गये हैं।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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