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________________ अधिकार] यतिशिक्षा होजानेके कारण अवश्य दुर्गतिमें जानेवाला है।" __ शार्दूलविक्रीडित. .. विवेचन-ऊपरके श्लोकमें कहेअनुसार हे यति! मेरे लिये बहुत उचित परस्थिति है, संसारके सामान्य पुरुषों की अपेक्षा वेरी स्थिति बहुत उत्तम है, अपितु तू शानी है, व्रतधारी है, गृह या स्त्रीके बन्धनसे रहित है, फिर भी तेरा कर्तव्य पूरा नहीं करता है और अस्तव्यस्तरूपसे इन्द्रियरूप अश्व जिस भोर खीचकर लेजाते हैं उसी ओर दौड़ा जाता है इसका क्या कारण है ? मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि जो मोहराजा अपना साम्राज्य स्थापितकर इस सम्पूर्ण जगतको प्रमादमदिराका पान कराके नचाता है उसने तुझे भी अपने पंजेमें धर दबाया है, तेरे पर भी उसने हाथ साफ किया है, अथवा तू अवश्य नरकमें जानेवाला है। इन दोनों कारणों में बात तो एककी एक ही है । मोहवश प्राणी इन्द्रियदमन, आत्मसंयम नहीं कर सकता है और इसी कारण प्रशस्त उद्यम नहीं होता है। आयुष्यबन्ध भोगे बिना छुटकारा नहीं हो सकता है, फिर भी असाधारण वीर्योल्लास प्रगट करके संयोगोंको ऐसे अनुकूल बना सकता है कि उस अशुभ आयुष्यको भोगते समय फिरसे अशुम कोंकी संतति उत्पन्न न हो सके। हे मुनि ! तेरे सदृश पवित्र ऋषि-संन्यासीको तो मोह-ममत्वकी बुद्धिका और मेरेपनका सर्वथा परित्याग करदेना चाहिये । यतिके सावध भाचरण करने में मृषोक्तिका दोष. उच्चारयस्यनुदिनं न करोमि सर्व, सावद्यमित्यसकृदेतदथो करोषि। . नित्यं मृषोक्तिजिनवञ्चनभारितान्तत्, ... .
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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