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________________ विनर ] यतिशिक्षा [१३ नो राजभीश्च भगवत्समयं च वेरिस। . शुद्धे तथापि चरणे यतसे न भिक्षो, __ तत्ते परिग्रहभरो नरकार्थमेव ॥ ९॥ ." तुझे आजीविका, स्त्री, पुत्र आदिकी चिन्ता नहीं है, राज्यका भय नहीं है और भगवानके सिद्धान्तोंको तू जानता है अथवा सिद्धान्तकी पुस्तकें तेरे पास है, तिसपर भी हे यति : यदि तू शुद्ध चारित्रके लिये प्रयत्न न करेगा तो फिर तेरे पासकी सब वस्तुओं का भार ( परिग्रह ) नरकके लिये ही है।" वसन्ततिलका. विवेचन तेरेको दो-चारके पेट नहीं भरने हैं, बीके लिये गहना या वस्त्र नहीं खरीदना है, पुत्रकी सगाई या नग्न नहीं करना है, अथवा कुटुम्बकी अनेकों उपाधिये नहीं करनी है, तुझे कमानेकी माथाकूट नहीं करनी है और इस कठिन युगमें तुझे हाथ भी नहीं हिलाना पड़ता है, तेरे पास कोई बड़ी पूंजी भी नहीं है कि जिससे पूर्वके समय में राज्यकी ओरसे भय था और वर्तमानकालमें निरर्थक झघडेमें लुटानेका भय है वैसा भय तुझे होवे । तदुपरान्त तू ज्ञानी है, बुद्धिशाली है, शास्त्रवेत्ता है, पौर वीर परमात्माद्वारा सर्व समयमें अनुकूल होनेवाले बताये सिद्धान्तोंके रहस्यको भी तू भलीभाँति जानता है । इतना सुभिता होते हुए भी यदि तू शुद्ध चारित्रवान् नहीं बनता है तो तेरा भविष्य हमें वो अन्धकारमय प्रतीत होता है ? तू तेरे पास व्यर्थ संचय क्यों करता है ! तू परिग्रहके भारसे दबकर नरकमें जायगा। यहां जो कहे गये हैं ये सामान्य ..परिग्रह-बन, पात्र, उपधिरूपशी ससके । पंचमहाप्रतधारी होकर. जो यदि पैसे तथा १नो राजभीरसि चागमपुस्तकानीति वा पाठः/
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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