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________________ रवा हो होती है उतने अंश तक वह गोते खाया करता है। इस जीवनका क्या हेतु है ? उत्पन्न होना, मिट्टीमें खेल-कूद करना, स्तनपान करना, अभ्यास करना, धनोपार्जन करना, शादी विवाह करना, मौजशोख करना, और मर जाना यह तो एक सामान्य बात हुई । जीवनका महान् हेतु क्या है ? इसका विचार कर तदनुसार भावना-भावनामूर्ति निर्मित करनी चाहिये । इस मूर्तिके ? निर्माण होजानेपर उस मूर्तिके वर्तनानुसार अनुकरण होता है। इसप्रकार का विचार इस जमाने में नहीं होता है अथवा बहुत कम होता है इसलिये जागृति पैदा करने की अत्यन्त आवश्यकता है। ऐसे समयमें इसप्रकारके ग्रन्थ बहुत लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं । ऐसे ग्रन्थ जीवको प्राक्षेप कर मृदुतासे भाषण कर, समझा कर अनेक प्रकारका सत्य उपदेश करते हैं ऐसा उपदेश बहुत उत्तमतासे होता हो तो सत्संग से प्राप्त हो सकता है। जो वस्तुस्वरूपको पहचान कर उससे विराम पाकर आत्मिक उन्नति करनेमें हो जीवन व्यतीत करते हों उनके निकट रहकर सत्य स्वरूप को समः झने की अत्यन्त आवश्यकता है। सत्संगकी अत्यन्त महिमा है। जिनमें गुण उत्पन्न हो गया हो वे ही गुणका वास्तविक बोध करा सकते हैं और सञ्चा प्रभाव भी उन्हीके बोधका :पड सकता है। दृष्टान्तरूप जिन प्राणियोंको समता गुण प्राप्त हुआ हो और जिन्होने उस गुणका विकास किया हो उनके संसर्गमें यदि प्राध घडी मात्र भी रहनेका अवसर प्राप्त हो जाय तो उस समय अन्तर आत्मा जिस अनिर्वचनीय सुखका अनुभव करता है और उसे जो पात्मिक आनंद होता है वह अतीव है, महान् है और अवर्णनीय है। ऐसे महात्माअोंकी यदि निरन्तर सेवा करनेका सुअवसर प्राप्त हो जाय तो अल्पकालमें ही कार्यकी सिद्धि हो सकती है, परन्तु इस सम्बध में इस जमाने में दो प्रकार की बाधायें आती है। ऐसे महात्मा बहुत कम हैं और उनसे लाभ उठानेवालों को अवकाश भी बहुत थोड़ा मिलता है । बाह्य देखावका कार्य अधिक बढ़ गया है कि सत्य महात्मा कौन है?, और कहां है ? ऐसे प्रत्यन्त विकट प्रश्न आ खड़े होते हैं। इनके निर्णय करनेके लिये जिनके पास अवकाश और इच्छा होगो वे तो उनको कदाच हते होगे और उनसे लाभ उठाते होगें, परन्तु बहुधा इस सम्बन्धमें
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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