SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 547
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३०] अध्यात्मकल्पद्रुम [ एकादश लवोऽपि रोगान् हरते सुधायाः। तृण्यां दहत्याशु कणोऽपि चाग्ने. धर्मस्य लेशोऽप्यमलस्तांहः ॥ १३ ॥ " एक छोटा-सा दीपक भी अंधकारका नाश कर देता है, अमृतकी एक बून्द भी अनेको रोगोंको नष्ट कर देती है, और अग्निकी एक चिनगारी भी तीनकोके बडे भारी मोटे देरको जला देती है, इसी प्रकार यदि धर्मका थोड़ा अंश भी निर्मल हो तो पापको नष्ट कर देता है।" उपजाति. विवेचन-एक दीपक भी सर्व विस्तृत स्थानपरसे अंधकारको दूर कर देता है । ऐसा ही सबके लिये समझे । इस सबसे यह प्रगट होता है कि शुद्धिकी ओर विशेषतया ध्यान देना चाहिये । अब शुद्धिके साथ भावनाका कितना गहरा सम्बन्ध है यह बताकर अधिकारकी समाप्ति की जाती है । भाव तथा उपयोगरहित क्रियासे कायक्लेश उपसंहार. भावोपयोगशून्याः कुर्वन्नावश्यकीः क्रियाः सर्वाः। देहक्लेशं लभसे ___ फलमाप्स्यसि नैव पुनरासाम् ॥ १४ ॥ - " भाव और उपयोग विना सर्व आवश्यक क्रिया करनेसे तुझे एकमात्र कायक्लेश ( शरीरकी मजदूरी ) होगा, परन्तु तुझे उसका फल कदापि प्राप्त नहीं हो सकेगा।" आर्या. विवेचन-'भाव" अर्थात् चित्तका उत्साह (वीर्योल्लास) १ तृणं इत्यपि पाठोऽन्यत्र दृश्यते ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy