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________________ अधिकार] वैराग्योपदेशाधिकारः [४०५ अर्थात् इसको पढ़कर, समझकर, मननकर बारम्बार इसका पुनरावर्तन करते रहना चाहिये । मनुष्य तात्कालिक सुखकी ओर विशेष ध्यान देते हैं किन्तु दीर्घदृष्टिसे नहीं देखते हैं,यह भी इतनी ही उपयोगी हकीकत है। विषषमे मणिकबुद्धि रखनेकी . भावश्यकता है। प्रत्येक विषयके सम्बन्धमें योग्य स्थानपर उचित विवेचन किया गया है। संसारमें कोई किसीका नहीं है, स्वार्थका मेला एकत्र हुदा है, इसलिये गृहस्थावास तथा संसारके लिये अपना योग्य कर्तव्य हो उतने समय तक उसके लिये जो करना उचित प्रतीत होता हो वह करे; बाकी वास्तविक कार्य तो शांत स्थानमें बैठकर अपना वास्तविक स्वरूप क्या है ? इसका विचार करना यह है । प्रवृत्तिमें पड़े रहनेवालेको सच्चे सुखकी बानगी भी नही मिल सकती है, उसके लिये मनुष्यभव एक चक्करके समान होता है, व्यर्थ होता है और अन्तमें पश्चात्ताप कराता है । एसी अनेकों उपयोगी हकीकत शास्त्रोमें भरी पड़ी है, विचार के लिये इतनी ही काफी है, बाकी संसारयात्रा सफल करनेका प्रबल साधन अपने क्षयोपशम अनुसार और गुरुमहारानके उपदेशानुसार ढूढ़ लेनेको प्रत्येकको प्रयत्न करना चाहिये । यह मनुष्यभव किस प्रकार सफल हो सकता है यह विचारना एक टेढा प्रश्न है। शुद्ध दशा प्राप्त करनेके लिये यह अच्छा अवसर है। पाश्चात्य संस्कारोंके कारण विद्याप्राप्ति के साधन, राज्यकी ओरसे धर्मस्वतंत्रता, पुस्तकोंकी प्राप्ति के लिये मुद्रणयंत्रका सुभीता, सम्पूर्ण भारतवर्ष में हुई जागृतिके कारण स्वधर्ममर्यादा पुनः स्थापन करने निमित्त संस्कारवालोंकी अभिरूचि और दूसरे भनेको साधनोंके कारण पहेली कितनी ही सदियों से वर्तमान समय बहुत अनुकूल समय है । इसके साथ ही साथ पाश्चात्य दृढ़ संस्कारों के
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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