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________________ अधिकार ] वैराग्योपदेशाधिकारः [ ३९७ हैं। अपनी वास्तविक स्थिति और कर्तव्य क्या है ? इसके विचारनेकी अत्यन्त आवश्यकता है। विचार भी योग्य अंकुश निचे और रीति अनुसार करना योग्य है। कितनी ही बार अपने में हो उससे भी विचार करवेकी अधिक योग्यता मानने में आती है। दृष्टान्तरूप पितृधर्म, पतिधर्म और लोकधर्ममेंसे कौन-सा धर्म प्रथम कर्तव्यरूप है ऐसे अगत्यके प्रश्नों में एक पक्षके विचारोंसे कार्य न करना चाहिये, किन्तु अधिक माननीय विवेचक शक्तिवाले पुरुषों के विचारोंको समझनेका प्रयास करना चाहिये । चाहे जैसे भी करके आत्महित करनेके रष्टिबिन्दुको न चूकना चाहिये । परदेशीपंथीका प्रेम-हितविचारणा. • किमु मुह्यसि गत्वरैः पृथक्, __कृपणैर्बन्धुवपुः परिग्रहैः। विमृशस्व हितोपयोगिनोऽ वसरेऽस्मिन् परलोकपान्थरे ॥ २३ ॥ " हे परलोक जानेवाले पंथी ! अलग अलग जानेवाले और तुच्छ ऐसे बंधु, शरीर और पैसोंसे तू क्यों मोह करता है ? इस समय तेरे सुख में वृद्धि करनेवाले वास्तविक उपाय क्या है उनका ही विचार कर ।" गीति. विवेचन-स्त्री, पुत्र, धन, शरीर अलग अलग जानेवाले हैं । धन घरमें ही रह जायगा, स्खी दरवजे तक आयगी, पुत्र श्मशान तक आवेगें और शरीर चिता तक आयगा, परन्तु अन्तमें तो तूं अकेला ही रह जायगा । ये सब शरणभूत होनेमें असमर्थ हैं । यहाँ जो सबका समागम हुआ है यह एक मेलेके समान है । वीर्थस्थानपर जैसे अमुक दिन मेला भरता है और दूसरे दिन पिछा सब बिखर जाता है इसीप्रकार आँख बन्द
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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