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________________ अधिकार ] वैराग्योपदेशाधिकारः [३८५ तू ऐसा कार्य कर कि जिससे तुझे वाञ्छित वस्तुमें सफलता प्राप्त हो' इस समय तो ऐसा अभिनवतप, संयम, धृति, व्यवहारशुद्धि, विरति आदि कर कि जिससे तेरे सब भवके दुखोंका अन्त हो जाय । यह समय तेरे हाथमें स्वर्ण समय है । ऐसा अवसर बार बार हाथमें न आ सकेगा और फिर धन गये पश्चात् ज्ञान और भायुके व्यतीत हो जाने पर वैराग्य व्यर्थ है । संस्कृतमें एक कहावत है कि " अशक्तिमान भवेत्साधु, वृद्धा नारी पतिवृता" अशक्तिमान् होनेपर पुरुष साधु बन कर बैठ जाता है और वृद्ध स्त्री पतिव्रता होनेका दावा करे तो इसमें कुछ विशेषता नहीं है । जिस समय शरीरकी सब इन्द्रियों मजबूत हों, काम करनेकी शक्ति हो उस समय इन्द्रियोंपर अंकुश रखना, सुकृत्यमें ही शक्तिका व्यय करना प्रशस्य है । सुखप्राप्तिकी अभिलाषा हो और दुःखके परित्याग करनेकी कामना हो सो इस सुअवसरसे लाभ उठाव । सद्गुण प्राप्त करनेकी प्रबल अभिलाषाके साथ साथ दुर्गुणों पर दृढ़ विराग हो जाने पर धीरे धीरे तेरा साध्यबिन्दु समीप आता जाता है जिसको तुझे बारम्बार समझानेकी आवश्यकता नहीं है, ऐसा करनेका इस भवमें तुझे स्वर्ण अवसर प्राप्त हो गया है, अतः उससे पूरा लाभ उठाले । सुखप्राप्तिका उपाय-धर्मसर्वस्व. धनाङ्गसौख्यस्वजनानसूनपि, त्यज त्यजैकं न च धर्ममार्हतम भवन्ति धर्माद्धि भवे भवेऽर्थिता न्यमून्यमीभिः पुनरेष दुर्लभः ॥१७॥ ___ "पैसा, शरीर, सुख, सगेसम्बन्धी और अन्तमें प्राण
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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