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________________ ३८४ ] अध्यात्मकल्पद्रुम [दशवाँ विवेचन-पापसे संसारमें डूबता है और फिर भी उन्हीं पापोंको करता है । डूबते हुए पुरुषके गर्दनमें यदि घट्टीका पाट या बड़ा पत्थर बांध दिया जावे तो वह विशेष डूबता जाता है और उसका मुर्दा भी हाथ नहीं आ सकता है, कारण कि उसका भार अधिक होनेसे वह ऊपर नहीं उठ सकता है । पापी डूबते डूबते भी ऐसे पाप करते हैं कि जिससे वह अधिकसे अधिक डूबता ही जाता है । इस सबका अर्थ स्पष्ट ही है। सुखप्राप्ति और दुःख-नाशका उपाय. पुनः पुनर्जीव तवोपदिश्यते, बिभेषि दुःखात्सुखमीहसे चेत् । कुरुष्व तत्किञ्चन येन वाञ्छितं, भवेत्तवास्तेऽवसरोऽयमेव यत ॥१६॥ ___ " हे भाई ! हम तो तूझे बारम्बार यही कहते है कि यदि तु दुखोंका भय तथा सुखोंकी अभिलाषा रखता हो तो ऐसा कार्य कर कि जिससे तुझे वाञ्छित वस्तुकी प्राप्ति हो सके, क्यों कि इस समय तुझे सुअवसर प्राप्त हो गया है ( यह तेरा समय है)।" वंशस्थ. विवेचन-ज्ञानी गुरु दयाके भण्डार होते हैं। उनको इस जीवकी दुःखित दशा देखकर अत्यन्त दया उत्पन्न होजाती है, इस लिये तुझे सब उपदेशका सार बताते हैं कि हे भाई ! तूने इस समय पंचेन्द्रियपन, आर्यक्षेत्र, मनुष्यभव, धर्मसाधन निमित्त सर्व इन्द्रियोंकी अनुकूलता, जैनधर्म, सत्यतत्त्वोपदेशक गुरुमहाराजका योग और ऐसे ऐसे दूसरे अनेकों योगोंको प्राप्त किया है इस लिये अब तुझे सारांशमें कहते हैं जो सम्पूर्ण शास्त्रमें कहा गया है उसका सार तुझे आधे श्लोकमें ही कहते हैं कि.
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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