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________________ अधिकार ] वैराग्योपदेशाधिकारः [ ३६५ दुर्गतिमें जाते हुए मनमें अत्यन्त दुःखी होगा; परन्तु फिर वह खेद किसी काम नहीं आयगा; इस लिये विचार करके तुझे तेरा चेष्टित ऐसा उत्तम रखना चाहिये कि जिससे भविष्यमें खेद करनेकी संभावना ही न रहे । सुख क्या है ? कहां मिलता है ? कब मिलता है ? किसको मिल सकता है ? क्यों मिलता है ? उसका क्या परिणाम होता है ? इसका विचार कर । कितने ही जीव बछड़े के समान दूसरोंके सांसारिक सुखोंका अवलोकन कर अपनी मन्द स्थिति पर पश्चात्ताप करते हैं परन्तु वे उसका वास्तविक विचार नहीं करते हैं । उनको यदि कोई गायमाता समान सत्यस्वरूप समझानेवाला मिल जावे तो अच्छा है, वरना उनको निरन्तर परिताप रहता है । यह उदाहरण अत्यन्त प्रभाव डालनेवाला है और इस पर विचार कर अपने पर लागु करनेसे उपयोगी बोध मिल सकता है। २ काकिणीका दृष्टान्त. एक गरीब पुरुष था। वह आजीविका उपार्जन निमित्त परदेश गया । परदेशमें अत्यन्त परिश्रमद्वारा सहस्र सुवर्णमुद्रा उपार्जित की। तत्पश्चात् किसीके संग अपने देशको प्रस्थान किया। उसने अपनी समस्त सुवर्णमुद्रोंको एक बांस की नलीमें भर कर उस नलीको अपनी कमरके साथ बांध दिया और अपने राह खर्चके लिये एक मोहर की काकिणी ले ली। (एक रुपयेकी अस्सी काकिणियें होती है, और एक काकिणी सवा दोकड़ाकी होती है ) अब उस वक्तिके संग चलने लगा। जब मार्गमें एक वृक्ष तले वह भोजन करने बैठा तो वहां एक काकिणी भूल गया । दोपहर पश्चात् वहांसे प्रस्थान किया । सायंकाल होने पर काकिणीको ढूंढा । जब काकिणी न मिली तो विचार किया कि प्रात:काल ही काकिणी निमित्त एक सोनेकी मुद्रा बटानी पड़ेगी
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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