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________________ ३६४ ] अध्यात्मकल्पद्रुम [ दशवाँ होता है और मुझ मन्दभाग्यको तो पूरा घास भी नहीं मीलता है, और उचित समय पर पानीके लिये भी मुंह ताकना पड़ता है। अरेरे! मैं अत्यन्त भाग्यहीन हूं' गाय ने कहा ' हे वत्स ! जिस प्रकार किसीकी मौत समीप आ रही हो और वैद्य ने उसके जीवनकी आशा छोड़दी हो तब उसे पथ्य अपथ्यका विचार किये बिना ही जो वह खाना चाहता है उसे खानेको दिया जाता है। इसीप्रकार यह बकरा भी वध्य है और इस समय तो इसकी बहुत सारसंभाल होती दिखलाई देती है परन्तु भविष्यमें जो इसकी दशा होगी उसको देखना । ' अपनी माताका यह कथन श्रवण कर कुछ सन्तोष रख कर बछड़ा जो कुछ होता है वह देखता रहता है । पांच दस दिन इसप्रकार व्यतीत हो गये । एक दिन बड़े घरके पैसादार सगे पाहुंने बन कर आये, अतएव प्रात:कालमें में में करते हुए बकरेको पकड़ कर मार डाला और उसके माँसके टुकड़े टुकड़े कर मुंज कर सम्पूर्ण घर. वाले तथा पाहुंनों ने भोजन किया । बछड़ा यह सब घटना देख कर उस दिन भी अपनी माता गायका दूध नहीं पीया और माताके पूछने पर कहने लगा कि ' मुझे तो अत्यन्त भय मालूम होता है । बकरेकी यह स्थिति देख कर मुझे तो दूध पीनेकी अभिलाषा भी नहीं होती है ।' गायमाता ने कहा 'वत्स ! मै ने तो तुझे उसी समय कहा था कि यह सब मरने निमित्त ही है।" उपनयः-जिस प्रकार बकरा आनन्दमें निमग्न होकर यथेष्ठ खाता था और पुष्ट भी हो गया था, परन्तु जब पाहुने आये तब उसका शिरच्छेद हुआ और उस समय में में कर रोनेचिल्लाने लगा; उसीप्रकार तूं प्रमादसे विषयकषायमें आसक्त होकर स्वेच्छापूर्वक विचरता है और पापसे पुष्ट होता है, परन्तु जब आयुष्य पूर्ण होगा तब मनुष्य जन्म हारकर नरकादि
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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