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________________ अधिकार ] वैराग्योपदेशाधिकारः . [ ३५३ अनुक्रमसे सातों वर्गणारूपसे सर्व पुद्गल भोग लिये जावे तब द्रव्यसे एक सूक्ष्म पुद्गलपरावर्तन होता है। ___ लोकाकाशके असंख्य प्रदेश हैं, उन प्रत्येक प्रदेशको मरणसे पर्श करे तब एक बादर पुद्गलपरावर्तन होता है और लोकाकाशके सर्व प्रदेशोंकों क्रमशः एकके पश्चात् एक प्रदेशका स्पर्शकर मृत्युको प्राप्त हो, इसप्रकार सर्व प्रदेशों का अनुक्रमसे पर्श हो तब क्षेत्रसें एक सूक्ष्म पुद्गलपरावर्तन होता है। इसमें इतना ध्यानमें अवश्य रखना चाहिये कि किसीएक प्रदेशमें मरण होने. पश्चात् उसके अनन्तर प्रदेशमें मृत्यु हो उसी प्रदेशको गिनें, शेष अन्य प्रदेशोमें बिचके समयमें चाहे जितने मरण क्यों न हों परन्तु उन प्रदेशको नहीं गिनने चाहिये ।। उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीके सब समयको उलटे सुलटे (चाहे जैसे ) मरणसे स्पर्श करे तब कालसे एक बादर पुद्गलपरावर्तन होता है और ऊपर लिखी रीति अनुसार एक कालचक्रके प्रत्येक समयको अनुक्रमसे मरण कर स्पर्श करें तब कालसे एक सूक्ष्म पुद्गल परावर्तन होता है। इसमें उत्सपिणिके प्रथम समयकाल करने पश्चात् उसके बाद ही दूसरे समयमें दूसरी और किसी भी उत्सर्पिणी में काल करें वह ही गिना जाता है, बिचके मरण समयको नहीं गिना जाता है । कषायके कारणसे जो अध्यवसाय होते हैं उनले कर्मबन्ध होते हैं । इस कर्मबन्धनमें बहुत तरतमता होती है। कषाय मन्द या तीव्र हो उसी प्रकार कर्मके अनुबन्धनमें भेद होता है। इसके असंख्य स्थान है इसलिये अनुबंधस्थान भी असंख्य हैं । प्राणीको जैसी जैसी भिन्न भिन्न वासना होती है वैसे वैसे भिन्न भिन्न अध्यवसाय होते हैं और उन प्रत्येकमें तरतमता होती है ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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