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________________ अधिकार ] चितदमनाधिकार BI प्रता, किसी समय अध्यात्म ग्रन्थोंके पढ़ने में अथवा" मनन करनेमें मन इतना अधिक एकाग्र होजाता है कि बाहरके विचार भी नहीं आने पाते हैं, विकल्प नष्ट होजाते हैं और स्थिरता प्राप्त .. होजाती है । यहाँ वर्णन की हुई स्थिति तो एक मात्र बानगी है, वरना जंब इस जीवको भावना भानेकी टेव पड़जाती है तब , तो मनको अलौकिक आनंदकी प्राप्ति होती है । संसारके किसी भी सुखके साथ उस आनन्दकी समानता नहीं की जासकती है। कारण कि उसके सदृश संसार में कोई भी सुख नज़र नहीं आता है। ___इसप्रकार मनोनिग्रहद्वार पूर्ण हुआ । मनोनिग्रह अथवा चित्तदमन इन दो शब्दोंका इस अधिकारमें बारम्बार प्रयोग किया गया है, जिसका भावार्थ यह है कि मनमें जो बारम्बार बुरे संकल्प होते रहते हैं उनपर अंकुश लगाना, अस्थिरता दूर करना और मनकी स्थितिस्थापकता (equilibrium ) बनाई रखनेकी व्यवस्था करनी चाहिये । गृहमें कोई असाध्य पीड़ित हो उस समय अथवा किसीकी मृत्यु हुई हो उस समय इस जीवकी कैसी दुःखित दशा होजाती है । यह जानता है कि यहाँ यह स्वयं भी सदैवके लिये नहीं रहनेवाला है, फिर भी मनमें अनेकों विचार करके अत्यन्त दुःखी होता है । पड़ोसी के गृहमें आग लगी हो उस समय सामान हटानेकी दौड़धूप और अपने गृहमें आग लगनेपर जीवकी स्थिति मनपरके अधिकारको प्रगट करती है । यह तो मानो खड़ा खड़ा जल भून कर खाक होजाता है । ऐसे समयमें स्थिर प्रकृतिके पुरुष भवितव्यतापर विचार करके देखते रहते हैं । आवश्यक प्रसंग प्राप्त होनेपर भी यदि पेटका. पानी न हिले तो समझना चाहिये कि अब यह जीव ऊच्चतर स्थिति प्राप्त करने योग्य होगया है । व्यवहारकुशल पुरुष ऐसा दृढ़ मन रख सकते हैं किन्तु इससे इस विषयकी किमत
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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