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________________ ३३४] अध्यात्मकल्पद्रुम [ नवाँ विचार करनेका भी अवकाश न रहा। इसप्रकार वह सुधर गई । इस नियमको ध्यानमें रखकर आत्माको निरन्तर संयम. योगों में प्रवृत्त रखना चाहिये कि जिससे इसकी अस्तव्यस्तरूपसे जहाँ जहाँ भटकनेकी टेव न पड़े और यदि पड़ी हो तो भी दूर हो जावे । ..मनोनिग्रहमें भावनाओंका माहात्म्य. भावनापरिणामेषु, सिंहेष्विव मनोबने। सदा जाग्रत्सु दुर्ध्यान-सूकरा न विशन्त्यपि ॥१७॥ " मनरूप बनमें भावना अध्यवसायरूप सिंह जब तक सदा जाग्रत होता है तबतक दुनिरूप सुअर उस बनमें प्रवेश भी नहीं कर सकते हैं । " अनुष्टुप्. विवेचन-ऊपर मनोनिग्रहके चार कषाय बतलाये गये हैं, उनमें भी भावनाका उपाय बहुत असरकारक है, तात्कालिक तथा इच्छित प्रभाव उत्पन्न करनेवाला है; जबतक मनमें शुद्ध भावना जागृत हो तब तक एक भी बुरा विचार मनमें प्रवेश नहीं करने पाता है । एक जंगलका राजा सिंह जबतक जंगल में फिरता रहता है तबतक सुअर या ऐसा कोई दूसरा प्राणी उस जंगल में रहतो क्या सके परन्तु उसमें प्रवेश भी नहीं कर सकता हैउसको प्रवेश करनेका साहस तक नहीं हो सकता है; इसीप्रकार जबतक मनमें शुभ भावना जागृत होती है तबतक दुनि-बुरे संकल्प नहीं हो सकते हैं। यह हकीककत अनुभवसिद्ध है, प्रत्येक पाठकको इसका अनुभव हुआ ही होगा। प्रत्येक पुरुष ने जीवन के किसी समयमेंजीवन के एक आनन्दित क्षणमें ऐसी स्थितिका अवश्य अनुभव किया होगा । किसी समय मन्दिरमें प्रभुके दर्शनसे, किसी समय पौषधमें स्तवनगानकी लयमें, किसी समय पूजा बनानेकी एका १ महावने इति वा पाठ.
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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