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________________ ३१०] अध्यात्मकल्पद्रुम [नवों तो भी चलता रहता है, इसीप्रकार सृष्टि ( संसार व्यवहारपाश्रम ) चलाने बाद थोड़े से समयके लिये दूर हो जावे तो भी वह तो चलती ही रहती है। एक चक्र अनेकों चक्रोंको चलाता है उसीप्रकार सृष्टि की रचना समझ; उसको रोकने के लिये यदि हाथ लगाया जावे तो हाथ टूट जाय । उसको रोकने के दो ही उपाय हैं: या तो स्टीम ( Steam ) ( जो चक्रगतिका कारण है) निकाल देना या चक्रके मजबूत ब्रेक लगाना। हमारा सर्व प्रयास तो स्टीम निकाल देना ही है, परन्तु यह जब तक न होसके तब तक मजबूत ब्रेक लगाना । यह ही परम हितकारक है और साध्यको समीप लानेवाला है। मनोनिग्रह और यमनियम. वशं मनो यस्य समाहितं स्यात्, किं तस्य कार्य नियमैर्यमैश्च ? । हतं मनो यस्य च दुर्विकल्पैः, किं तस्य कार्य नियमैर्यमेश्च ? ॥५॥ "जिस प्राणीका मन समाधिवंत होकर अपने वशीभूत होजाता है उसको फिर यम नियमसे क्या प्रयोजन ? और जिसका मन दुर्विकल्पोंसे छिन्नभिन्न किया हुआ है उसको भी यमनियमोंसे क्या प्रयोजन ?" उपजाति. विवेचन-जिस प्राणीका मन सर्व संयोगोंमें एकसा रहता है, जिसकी सुख दुःख प्रसंगोंमें भी मनकी स्थितिस्थापकता कायम रहती है, अर्थात् जिसने सचमुच मनपर अंकुश लगा रक्खा है उसको यम नियमसे कोई विशेष लाभ नहीं होता है । यम नियम आदि मनको वशमें करने के साधन हैं और साध्यके कब्जेमें आने पश्चात् साधनकी कोई आवश्यकता
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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