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________________ अथ नवमश्चित्तदमनाधिकारः HATHREE HODAI PAHAR M न्द्रियोंपर अंकुश, प्रमाद कषायका त्याग, समभाव आदि सब हकिकतोंका जो वर्णन किया गया है, उन सबका यही कारण है कि मनपर अंकुश रखना । मनपर अंकुश न हो तबतक शास्त्राभ्यास और धार्मिक बाह्य क्रिया उससे प्राप्त होनेवाले फलकी अपेक्षा बहुत अल्प फल देती है और पापकार्यों में भी पराधीनतासे प्रवर्तन करनेवाले अंकुशित मनवालेको अमुक मृदुता आजाती है, तथा दोष अल्प जान पड़ते हैं । ऐसी बड़ी उपयोगी हकिकत बतानेवाला सम्पूर्ण अन्धमें मध्यबिन्दुरूप यह सबसे उपयोगी केन्द्रस्थ द्वार लगभग बराबर मध्यमें ही आता है । इस अत्यन्त उपयोगी द्वारका प्रत्येक शब्द मनन करने योग्य है । मन धीवरका विश्वास न करना. कुकर्मजालैः कुविकल्पसूत्र र्निबध्यगाढं नरकाग्निभिश्चिरम् । विसारवत् पक्ष्यति जीव ! हे मनः कैवर्तकस्त्वामिति मास्य विश्वसीः ॥१॥ " हे चेतन ! मनधीवर ( मच्छीमार ) कुविकल्प डोरि. योंकी निर्मित कुकर्म जाल बिछाकर उसमें तुझे मजबूतीसे गुंथ कर अनेकों समय मच्छीके समान नरकाग्निमें भूनेगा, अतः उनका विश्वास.न कर ।"
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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