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________________ अधिकार ] - कषायत्याग २५७ भी खुदको विधिका ज्ञान न होनेसे अत्यन्त लाभको खादिया यह बात उसके हृदयको भेदने लगी; इसलिये वह प्रत्येक दिन मठमें जाकर सोने लगा और फिरसे उसी स्वप्नको देखनेकी अभिलाषा करने लगा; परन्तु वह स्वप्न फिरसे नहीं दिखाई देता है। इसलिये छठे श्लोकमें कहा है कि-"मूलदेव और कार्पटिक ( गोसाईका शिष्य )ने स्वप्नमें चन्द्र देखा, परन्तु कार्पटिकने कुंनिर्णय किया जिससे अल्प फल पाया । फिरसे उसी स्थानपर जाकर वह खोता है और कदाच देवयोगसे वही स्वप्न वह फिरसे भी देखले, किन्तु जो भाग्यहीन प्राणी मनुष्य भवको व्यर्थ गमा देते हैं वे फिरसे उसे कदापि प्राप्त नहीं कर सकते हैं।" • चक्र-इन्द्रपुर नगरमें इन्द्रदत्त राजा रहता था। उसके २२ रानियों से उत्पन्न हुए २२ पुत्र थे। राजाने फिरसे तेईसवी स्त्रीसे जो अपने ही मंत्रीकी पुत्री थी व्याह कर लिया, किन्तु शिघ्र ही राजाको उससे द्वेष हो गया इस लिये वह अपने पिताके घर जाकर रहने लगी । एक दिन राजां: भ्रमण करनेको निकला तो उस रूपसौंदर्यकी भंडार स्त्रीको झरोखेमे देखकर उसपर आसक्त हो गया, किन्तु उसको पहचान न सका। राजा रात्रिभर वहीं रहा और संयोगवश उसी रात्रिको मंत्रीपुत्री गर्भवती हुई । मंत्रीने सब वृतान्त पत्रपर लिख लिया। उचित समयपर अत्यन्त सुन्दर सुकुमार पुत्ररत्न उत्पन्न हुआ। उसको कलाचार्यके पास अध्ययन निमित्त रक्खा । वह बहुत विद्वान् तथा धनुर्विद्याम निपुण हुआ । गर्विष्ट राजपुत्र बहुत अच्छी प्रकारसे नहीं पढ़ सके । मंत्रीपुत्रीके पुत्रका नाम सुरेन्द्रदत्त रक्खा गया था। इसी समय' मथुरानगरके राजा जीतशत्रुकी निवृत्ति नामक पुत्री रूपयौवनसंपन्न हो गई थी। वह शृंगार सज कर अपने पिताके - .. '
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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