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________________ अधिकार] कषायत्याग [२४५ है। (७) तपमद-तपस्वीको. यह मद हो जाता है जिससे उसकी तपस्याके फलका नाश हो जाता है । कुरगड और चार मुनियों के दृष्टान्तको देखिये । (८) श्रुतमद-विद्याका मद तो इस जमाने . में अनेकों पुरुषोंको होता है । स्थूलिभद्रको श्रुतमद हुआ था जिससे पिछले पूर्वको मीसंघके आग्रहसे एक मात्र सूत्ररूपमें बताया गया-अर्थसे नहीं बताये । इन आठों मदोंका बहुत विचार करना चाहिये। सिधा या उल्टा किसी न किसी तरह प्रत्येक पुरुष इनके जालमें फंस जाता है और संसारको दीर्घ बना देता है, इसलिये इनके बशीभूत न होना ही मनपर अंकुश रखना तथा जीवनयात्रा को सफल बनाना है। . ..' अनेक लेखक मान तथा मदकी भिन्नताका ध्यान नहीं रखते हैं। नहीं होनेवाले गुणोंका सद्भाव और होनेवाले गुणोंका उत्कर्ष बताना इसकों यदि हम अनुक्रमसे मान और मद सममें तो मदके विषयमें बहुत कुछ विचार करनेकी आवश्यकता रह जाती है । मद किसके लिये किया जावे इसका जरा विचार किजिये । ऐश्वर्य, धन या विद्या प्राप्त हो अथवा जाति, कुल या बल प्राप्त हो तो उसमें किस का मद किया जावे ? पूर्व शुभ कर्मके उदय होनेसे ये सब प्राप्त होते हैं, उसमें तुझे खुदको किसका मद करना है १ अपितु तेरेसे ज्ञान, धन, सम्पत्ति, बल आदिमें अनेकों बड़े बड़े हो गये हैं, अब भी तेरे शिरपर सवासेर संसारमें कितने ही हैं तो फिर तूं किस बातपर अहंकार करता है ? जो वस्तु तेरी खुदकी नहीं है, स्थाई नहीं है, किसीकी नहीं हुई उसका एक अंशमात्र प्राप्त करके तूं क्यों अहंकार करता है ? भोजकुमारने उसके काकाको कहलाया था कि " मान्धाता जैसे बड़े २ राजा चले गये उनके साथमें तो पृथ्वी
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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