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________________ १४४ ] अध्यात्मकल्पद्रुम [सप्तम । जातिलाभकुलैश्वर्यबलरूपतपाश्रुतैः । कुर्वन् मदं पुनस्तानि हीनानि लभते जनः ॥ इन आठोंका मद करनेसे वे ही वस्तुएं प्रतिकूल दशामें प्राप्त होती है । आठ प्रकारके मद करनेवालोंकी क्या . दशा हुई है इसकी विस्तारपूर्वक कथा देखनी हो तो जैन कथारत्न कोष ६ ३ भागके गोतमकुलकको ९३ पृष्ठसे पढ़े। (१) जातिमद-मैं उत्तम जातिका हूँ ऐसा अहंकार करना । हरिकेशी मुनिको जातिमद करनेसे चाण्डालके कुलमें उत्पन्न होना पड़ा । (२) लाभमद-छ खण्डके लाभसे मदमें आ कर सर्व चक्रवर्तियोंसे बड़ा होने निमित्त सुभूम सातवां खण्ड प्राप्त करनेको गया था, परन्तु अहंकारके कारण उसको अपने प्राणोंसे हाथ धोना पड़ा । अब भी व्यौपारमें हानि होने पर कर्मकी निन्दा की जाती है और लाभ होने पर उसका अमि. मान किया जाता है। ( ३ ) कुलमद-हम ऐसे हैं, हमारे बापदादोंने ऐसे ऐसे बड़े महान कार्य किये हैं आदि । मरिचीको अपने कुलका मद हो गया था जिससे नीच गोत्र कर्म बांधा, और वह अनेक भवतक सहन करना पड़ा। (४) ऐश्वर्यमदयह मद दशार्णभद्रको हुआ था । ऐसा ही मद रूस (Russia) के जार (Czar ) को हुआ था । दूसरे भी अनेकों जो अधिकार पाकर, स्वामीत्व प्राप्त करके अभिमानी हो जाते हैं यह सब ऐश्वर्यामद कहलाता है। (५) बलमद-श्री आदिनाथप्रभुके पुत्र अत्यन्त बलशाली बाहुबलिको यह मद हुआ था जिससे उसने अपने भाईके साथ ही घोर संग्राम किया था । (६) रूपमद-सनत्कुमार को यह मद हुआ था, अब भी गौरी कौमोंको यह मद होता है। स्त्रियों में यह मद विशेषतया होता है, परन्तु इससे परिणाममें अत्यन्त हानि होती
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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