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________________ अधिकार] कषायत्याग . [२२१ खमान-स्वत्व (Self-respeet) स्वव्यक्तित्व स्थापन ( Indiv. iduality ) आदि उपनाम देकर सद्गुणोंमें परिवर्तन कर दिया है । विवेकवान् प्राणीको इससे सचेत होनेकी आवश्यकता है। मानसे दूसरों के महान गुणोंकी परीक्षा नहीं हो सकती है, कदाच दृष्टिमें आ भी जा तो भी उनकी अस्ली किमतसे बहुत कम किमत होती है, कई बार तो बिलकुल ही किमत नहीं लगाई जाती है और विनयधर्म कि जिसको पूर्वधरपुरुष "विणो धम्मस्स मूलं" जैन धर्मका मूल विनय है ऐसा कह गये हैं उसपर पानी फिरा दिया जाता है । स्वव्यक्तित्व स्थापन करनेके, न हो उतने सद्गुण घराने का दिखावा करने की और विवेकविचार-कर्त्तव्यशून्य हो जानेकी बूरी भादत पड़ जाती है और उससे परिणाममें शून्यता ही आती है। इस श्लोकमें कितनी ही बातें खास विचारने योग्य हैं। प्रथम जनस्वभावको लेकर तपवृतिकी सरलता और मानमुक्ति की विषमता बताई गई है। मिट्टे दुर्गुणोको परित्याग करनेमें सदैव विशेष कठिनता होती है, कारण कि उनको पालन करते समय एक प्रकारका पौद्गलिक आनन्द आता है। अन्यथा वस्तुतः देखा जावे तो मानमुक्ति कोई विषममार्ग नहीं है। जीवनकी अस्थिरता, मान करनेवाले और करानेवालेकी स्थिति, पौद्गलिक आत्मिक वस्तुओं का सम्बन्ध और उनके स्थिर रहने के समयका बराबर विचार किया जावे तो मान शिघ्र ही लोप हो जायगा, एक मात्र बात यही है कि यह जीव कभी भी विचार नहीं कस्ता है। दूसरी बात यह है कि इस वर्तमान जमाने में स्वमान आदि ऊपर बताये अनुसार अनेकों दुर्गुणों का प्रवेश हो गया है जिन पर बहुत विचार करना योग्य है । अमुक हकीकतको उसके बाहरी स्वरूपमें लेकर विचार किया जाये तो
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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