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________________ करनेका यही कारण है कि सामान्य बुद्धि ऐसे गहन कार्यमें काम नहीं देती है। शास्त्रनिर्णयका परिणाम मुनिसुन्दरसूरिने सम्पूर्ण प्रथमें बताया है। उस उपरोक्त निश्चयपर विचारणा. गर्भवासनरकादिवेदनाः, - पश्यतोऽनवरतं श्रुतेक्षणैः । - नो कषायविषयेषु मानसं, पश्लिष्यते बुध ! विचिन्तयेति ताः ॥५॥ . "ज्ञानचचुसे गर्भवास, नारकी आदिकी वेदनाओंका बारंवार विचार करने पश्चात् तेरा मन विषयकषायकी ओर आकपण नहीं होगा; अतः हे पण्डित ! तूं इसके लिये वारंवार विचार कर।" रथाद्धता. विवेचन-शास्त्र अवलोकनसे-ज्ञानचक्षुसे जब तूं देखेगा तब तुझे जान पड़ेगा कि सांसारिक दुःख कैसे और कितने हैं ? गर्भवासका दुःख बहुत कठिन है, उसका स्मरण करानेके लिये शास्त्रकार कहते है कि सम्पूर्ण शरीरमें गर्म की हुई लोहेंकी सलाइयें लगाई हों उसके दुःखसे भी आठगुना अधिक गर्भमें दुःख है और जन्मसमय इससे भी अनन्तगुणा दुःख है। प्रवचनसारोद्धारमें भी इस सम्बन्धमें कहा है कि:. रम्भाग समः सुखी शिखिशिखावर्णाभिरुच्चैरय: सूचिभिः प्रतिरोमभेदितवपुस्तारुण्यपुण्यः पुमान् । दुःखं यल्लभते तदष्टगुणितं स्त्रीकुक्षिमध्यस्थिती, संपद्येत ततोऽप्यनन्तगुणितं जन्मक्षणे प्राणिनाम् ।।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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