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________________ परभी उनकी तरस नहीं बुझती, ठंडकी वेदनासे अत्यन्त परामव पाते हैं, अत्यन्त गर्मीसे कदर्थना पाते हैं और दूसरे नारकी जीव भी उनको वेदना देते हैं। इसप्रकार परमाधामिकत, क्षेत्रकृत और परस्परकृत वेदनाऐं वहाँ होती हैं ! ____“तियंचमें वहाँ का स्वामी नाकमें नाथ गलता है, उनसे भारी बोमा खिंचवाता है, अत्यन्त पीटता है, कान, पूछ आदि छेदता है, कृमि उनको खाजाते हैं और भूख-प्यास सहन करनी पड़ती है। " मनुष्य भवमें व्याधिये, वृद्धावस्था, दुर्जन मनुष्योंका प्रसंग, इष्टका वियोग, अनिष्टसंयोग, धनहरण, स्वजनमरण आदि अनेक दुःख हैं। " देवगतिमें भी इन्द्र की आज्ञाको परवशपनसे माननी पड़ती है, दूसरे देवोंका उत्कर्ष देखकर दुःख होता है, दूसरी देवांगनाके संगकी इच्छा मन को कष्ट पहुंचाती है, अपना च्यवन समय ( मरण ) जब समीप आता है तब देव बहुत दुःखी होते हैं, विलाप करतें हैं और अन्तमें अशुधिमय स्त्री की कुक्षिमें पड़ते हैं।" उपमिति भवप्रपंच पीठबंध भाषांतर पृ. ५२. इसप्रकार सब गतिमें दुःख है इसलिये तूं शास्त्रोंका अध्ययन करके या श्रवण करके निश्चय करले कि ऐसे दुःखों का क्या कारण होगा ? यदि तूं ऐसा विचार करेगा तो तुझे विषयों पर तिरस्कार होगा और मापकृत्योंसे भी पराङ्मुख होगा; कारण कि दुःख के हेतु विषयप्रमाद ही हैं ऐसा शास्त्रकारने जोर देकर निश्चयपूर्वक कहा है। इस हकीकतका शास्त्रसे निर्णय
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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