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________________ ४ शरीररूप बन्दीखानेमेंसे छूटनेके लिये तुझे असा. धारण प्रयास-पुरुषार्थ करना चाहिये । ५ शरीररूप बन्दीखानेमेंसे छूटनेका उपाय पुण्य-- प्रकृतियोंका संचय करना है। ६ शरीरको नाजुक न बनाकर इन्द्रियोंका संयम करना चाहिये । ७ शरीरसे आत्महित करने निमित्त धर्मध्यान करना चाहिये। ८ शरीरको किरायेका मकान समझना चाहिये । ९ ऐसी वृत्तिये धारण करना चाहिये कि जिससे शरीरको छोड़ते समय किश्चित्मात्र भी दुःख न हो । १० शरीरकी अशुचिका विचार करना चाहिये । हे भाइयों ! स्त्री, पुत्र, धन और शरीर पर मोह न रक्खो, ऐसा ज्ञानीपुरुष अनेक बार गला फाड़ फाड़ कर कह गये हैं, परन्तु फिर भी यह जीव सब बातें जानते हुए भी इनको नहीं छोड़ता है । विशेषतया शरीर के बारेमें तो जानकर भूल की जाती है, कारण कि शरीरके कोमल बनानेमें तो यह इतना हेरान होता है कि कुछ कहाँ भी नहीं जाता; स्वभावको नाजुक बना देता है और अनेक खेल खेलता है । इन सबका यह कारण है कि प्राणी इस शरीरको किरायेका मकान नहीं समझता है; परन्तु स्वगृह ही मान बैठता है । उसको मरते समय इस शरीरको छोड़नेमें बड़ा दुःख होगा, किन्तु यह दुःख किसको होता है ? जिसको भविष्य भवमें उत्तम स्थान मिलनेकी आशा नहीं होती वह ही घबराता तथा दुःखी होता है । हम
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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