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________________ १४६ अधिकरण होने से पापका ही हेतुभूत है और संसारभ्रमण करानेवाली है।" स्वागतावृत्त विवेचन-धन इकट्ठा करते समय सुख मिलने तथा स्वजन कुटुम्ब मित्रादि पर उपकार करने की बुद्धि होती है ( ग्रन्थकर्ता बहुत उत्तम भाव लेकर यह लिखता है, परन्तु सत्य हकीकत देखी जावे तो एसी बुद्धि भी बहुत कममें होती हैं। बहुत से लक्ष्मीवान तो खुद भोगते नहीं, दान देते नहीं, एक मात्र लक्ष्मी की तेजोरीपर चौकी ही लगाते रहते हैं। इस हेतु से इकट्ठा करने से और इकट्ठी की हुइ लक्ष्मी भी कर्मादान आदि अनेक पापों से भरपूर ही होती हैं और ऐसे पापों से लदा हुआ प्राणी संसारसमुद्र में डुबता ही जाता हैं और फिर अनन्त काल तक ऊपर नहीं उठ सकता हैं। मम्मण शेठ के पास बहुत द्रव्य था, फिर भी स्वयं तो तैल के चोले ही खाया करता था और घोर अंधेरी रात्री में बारीस से भरपूर नदी में लकड़ी खेंचकर पैसा के लिये अनेक कष्ट उठाता था । वह भी मरकर न जाने कहां गया ? नरक में जाने से संसारपात ही हुआ । यदि हम इतिहास को उठाकर देखे तो जान पड़ेगा कि धन-पैसे के लिये अनेकों जीवों का नाश किया जाता है और जो पैसा इकट्ठा करता है वह अपने लोभ पूर्ती के लिये ही इकट्ठा करता है । जूलीयससिझर, पोम्पी, मेरीयस, नेपोलीयन बोनापार्ट के इतिहास से यह बात स्पष्टतया सिद्ध है । इसके भी पश्चात् बोर और अग्रेजों का युद्ध और जापान तथा रुस का युद्ध भी पैसाप्राप्ति निमित्त ही हुआ हुआ जान पड़ता है । इतिहास में जो खून की नदिये बही हैं वे सब बहुधा इस लक्ष्मीप्राप्ति के निमित्त ही बहीं हुई हैं। इस
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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