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________________ १४४ पति उनकी कमजोरी का गेरलाभ उठाते हैं; परन्तु ऐसा स्वार्थपन आजकल के समय में चलना कठिन है। पुत्रवान को क्या सुख है यह वे नहीं देखते हैं। इसमें किञ्चित्मात्र भी सुख नहीं है, परन्तु दूर से देखने पर बहुत से पुत्रवाला सुखी मालूम होता है । पुत्रवानों को पुत्र की खास किमत नहीं होती परन्तु जिन के पुत्र न हों वे अपने जीवन को निष्फल समझते हैं, यह तहन अज्ञानता तथा मोह का कोहरा हैं। इस पर ज्ञान के प्रकाश पड़ने की आवश्यक्ता है । अपत्यपर स्नेह रख कर संसारयात्रा बढ़ाना, ऐसा जैनशास्त्र का उद्देश नहीं है । चोथे श्लोक में जो तीन कारण बताये हैं उनकी ओर विशेषतया ध्यान आकर्षित किया जाता है । इस अधिकार में सब से कम श्लोक हैं, परन्तु वास्तविक हकीकत का संक्षेप से भलीभाँति समावेश कर लिया गया है। . इति सविवरणोऽपत्यममत्वमोचननामा तृतीयोऽधिकारः।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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