SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसीप्रकार समझना चाहिये । विशेषतया यह भी प्रगट है कि यद्यपि त्रियों में मनोविकार अधिक होता है तिसपर भी देखा आवे तो लियां पुरुषों के बनिस्बत मनपर अधिक अंकुश रख सकती है । पुरुष से ललचाने पर स्त्री नहीं ललचाती, जब कि पुरुष पीगलते बहुत कम समय लगता है, स्त्रीशरीरबंधारण आदि कितने ही कारण ऐसे हैं किन्तु उनका यहां दिगदर्शन करना प्रस्तुत नहीं है । इन आठ गाथाओं में अन्थकारने स्त्रीशरीरकी अशुचिकी ओर विशेष ध्यान आकर्षण किया है। इसके उपरान्त एक हकीकत यह है कि प्रेम स्वाभाविक तथा विषयजन्य दो प्रकारका होता हैं । विषयजन्य प्रेम युवावस्था में बलवान होता है । ऐसा प्रेम ही बहुधा संसार में देखा जाता है, और वह किन किन दजों का होता है यह विचारयोग्य प्रश्न हैं। सुरीकान्ता, नयनावली आदि के प्रेम और स्वार्थ तथा मनोविकारतृप्ति स्त्रियों की काली बाजु बतलाती हैं । दुनिया का अनुभवी पुरुष देख सकता है कि प्रेमकी परिसीमा कहाँ कहाँ तक जाती है और स्वार्थसंघटन होजाने पर कितनी दूर पर जाकर ठहर जाती है । स्त्रीसम्बन्ध में अथवा उसके निमित्त से अनेकों खून तथा फौजदारी मुकदमें बनते हैं । इसप्रकार स्त्री सम्बन्ध से अनन्त संसार का बढ़ना संदेह रहित है। विषयतृप्ति में वास्तविक आनंद कुछ नहीं है, यह सब जानते है; परन्तु मनोविकार के वशीभूत होकर यह प्राणी अनेक कार्य करता हैं । विशेष करके जो स्थान अस्थान, समय, कुसमय पर विषयाधीन होजाते है उनको तो बहुत विचार करने योग्य है । कदाच स्वस्त्रीका त्याग न हो सके तो भी परस्त्री पर नजर डालने अथवा उसके साथ सम्बन्ध करने से उसके पतिके
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy