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________________ १३४ विजली है, सगे अथवा भाइयों के स्नेह का नाश, साहस, मृपावाद आदि संतापों का उत्पत्ति स्थान है और प्रत्यच राक्षसी है-ऐसे ऐसे उपनाम स्त्रियों के लिये मागम में दिये गये हैं, अत: उसको छोड़ दो।" शार्दूलविक्रीडितं. विवेचन:-इस श्लोक का भावार्थ सहज ही में समझा जा सकता है । बिना गुफा की सिंहनी का डर विशेषरूप से रखना चाहिये । गुफा में रहती हो तो उतने ही स्थान में डर रहता है, नहीं तो सम्पूर्ण जंगल में डर रहता है। इसीप्रकार बी का भय सम्पूर्ण संसाररूपी बन में रहता है । शेष का अर्थ स्पष्ट ही है। विद्वान् प्रन्थकारने इसप्रकार स्त्रीममत्वरूप को पूर्ण किया है । समता के अधिकार पश्चात् शिघ्र ही खीममत्वद्वार लिखने में एक बड़ा भारी आशय छिपा हुआ है। स्त्री संसार है, इसके ममत्व में फँसनाने से संसारकी जितनी वृद्धि होती है उतनी बहुधा अन्य किसी कारण से नहीं होती है। स्त्रियोंके लिये जो ग्रन्थकारने इतना अधिक लिखा है उसका आशय यह जान पड़ता है कि सर्व प्रकार के मोह में से स्त्रीका मोह प्राणी को बहुत बन्धन करानेवाला है । जिसप्रकार पुरुषों को स्त्रियें बन्धनरूप हैं उसीप्रकार स्त्रियों को पुरुष भी बन्धनरूप हैं । इस अधिकार में बताई हुई हकीकत स्त्रियों को पुरुषों के सम्बन्ध में भी १ सूर्याश्वर्यदि मः सजो सततगा शार्दूलविक्रीडितम्. शार्दूलविक्रीड़ित में १९ अक्षर होते हैं म, स, ज, स, त, त, तथा ग.
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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