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________________ Character ' नामक ग्रन्थ में लिखता है कि, " Never give way to what is little or by that very little, howev. er small it may be, you will be practically governed. " और यह सत्य भी है । प्रारम्भ में साधारण जान पड़नेवाले अफ़ीम आदि व्यसन की उस समय अवलेहना करके उपेक्षा की गई हो तो फिर धीरे धीरे वह सम्पूर्ण शरीरपर अधिकार जमा कर मनुष्य पर अपना अप्रतिहत स्वातंत्र्य चलाता है; अतः अवलोकन करने की टेव बारम्बार रखना और उसप्रकार की वस्तु को देख कर उस पर जय प्राप्त करना अत्यावश्यक है। "समता" अर्थात् सब जीवों तथा वस्तुओं के प्रति राग-द्वेष का अभाव | जिनकी आत्मिक मार्ग के पथिक बनने की जिज्ञासा हों उनको समता का विषय प्रथम अगत्य बनानेवाला है । विषय बहुत मनन करने योग्य और विचार कर उसमें से सार निकाल लेने योग्य है। समता के बिना प्रत्येक धार्मिक क्रिया बहुत अल्प फल देनेवाली है और वह फल इतना अल्प है कि जिस फल के मिलने की अभिलाषा से जो कार्य किया जाता है उसकी अपेक्षा से तो वह कुछ फल ही नहीं है ऐसा भी कह देवे तो कोई बुरा नहीं है। वह तो समस्त दिन भार ढोनेवाले को एक पाई मजूरी की मिलने के समान है । इसके विपरीत जब समता सहित कार्य किया जाता है तो उस कार्य में एक इस प्रकार का सौंदर्य अथवा मृदुता आजाती है कि जिस से उस कार्य में एक प्रकार का अपूर्व ( सहज ) आनंद व्याप्त होजाता है । इसका स्पष्ट झान १ मोक्षप्राप्त करने की ही इच्छा हो सकती है, अन्यथा पौद्गलिक इच्छा के सम्बन्ध में तो जैन शास्त्रकार निषेध करते हैं।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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