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________________ ११० इसके योग्य कौन है आदि स्पष्टतया बतला कर अपने अंतर्चक्षु उसकी ओर आकर्षित कर के अन्त में समता की वास्तविक स्थिति बताता है । समता का सामान्यतया यह ही अर्थ होता है कि चाहे जितने अनुकूल एवं प्रतिकूल संयोग क्यों न प्राप्त हों तो भी मन को विचलित न करें एवं एकसा रखें । ऐश्वर्य से आनंद और विपत्ति से शोक न प्रगट करें । चाहे जितने सुख देनेवाले संयोग क्यों न उपस्थित हो जावें किन्तु फिर भी उनसे मोहित होकर संसारमें लिप्त न हो जावें और चाहे जितनी ग्लानि उत्पन्न करनेवाले संयोग क्यों न उपस्थित हो जाय किन्तु फिर भी उनसे अस्थिर मनवाले न बनें । इसप्रकार की मनकी एकसी स्थिति को ' समता' कहते हैं । इस स्थिति को प्राप्त करने से भवदुःख मिटजाते हैं, लेकिन इसके लिये प्रत्येक पदार्थ को सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन कर के उसका और अपनों वास्तविक सम्बन्ध किस प्रकार का है इसका बराबर विचार करलेना आवश्यक है । इसप्रकार अवलोकन करने मात्र से ही वस्तु का वास्तविक स्वरूप जाना जासकता है। ___ यहाँ एक बात और विशेषतया ध्यान में रखने की है कि चाहे जितनी सूक्ष्म मालूम होनेवाली बाबत में भी परीक्षा किये बिना कोई कार्य न करें। व्यवहार के छोटे से छोटे विषय पर भी दृष्टि रखकर उसकी योग्य किमत लगावें। यदि उसकी परीक्षा में भूल की जावे, उसकी अधिक या कम किमत लगाई जावे, अथवा उसकी अवहेलना की जावे, छोटा समझ कर उस को छोड़ दिया जावे. अथवा उसकी उपेक्षा की जावे तो वह सूक्ष्म बाबत भी अपने पर उसका साम्राज्य स्थापित कर लेती है | Smiles नामक अंग्रेज लेखक अपने • The
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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