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________________ जितनी सम्पत्ति क्यों न हो, परन्तु फिर भी मृत्यु का भय दूर नहीं हो सकता । पैसा दुनियाँ की अनेकों वस्तुओं को खरीद सकता है परन्तु इस से यमदेव नहीं खरीदा जा सकता है। तेरे पास चाहे जितने सगे अथवा सेवक क्यों न हों परन्तु ये भी तुझे मृत्यु से नहीं बचा सकते । सेठ का पुत्रं बचाया जा सकता था उसको भी नहीं बचाया तो फिर मृत्यु से बचाने की तो उनमें शक्ति ही नहीं है और ऐसा विचार करने का उनको अवकाश ही कहाँ है ? इतना ही नहीं लेकिन कदाच देवता भी तेरे आधीन होजावें तो वे भी तेरा रक्षण करने से असमर्थ हैं, कारण कि वे स्वयं ही मृत्यु के वशीभूत हैं और तेरे आधीन चाहे किती ही मंत्रशक्ति क्यों न हो किन्तु फिर भी एक मिनिट भर भी कम या ज्यादह नहीं हो सकता । अनन्त वीर्यवाले श्रीमन्महावीर परमात्मासे महा उपकार होने की सम्भावना थी लेकिन वे भी मृत्यु के दोरे को एक क्षण के लिये भी नहीं रोक सके और बिना किसी प्रकार की शंका के स्पष्ट शब्दों में बतला गये हैं कि इस कार्य के करने में : मृत्यु के निर्धारित समय को बदलनेमें ; कोई भी समर्थ नहीं है । इस प्रकार की वस्तुस्थिति है इसको जानते हुए भी तूं उन्हीं धन, सगे आदि को सुख के साधन समझता है । इस संसारमें सुख है ही नहीं; इस में से सुख मिलने की जो इच्छा रखता है यह तेरी पहली भूल है, दूसरी भूल इसी पहली भूल का परिणामस्वरूप है, और वह यह है कि धन, सगे, स्वजन आदि मुख के साधन माने जाते हैं। इन दोनों भूलों के परिणामस्वरूप १ २८ वे श्लोक के शिवेचन को देखिये ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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