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________________ सब बातों में सब प्रकार से घटित होने योग्य है। वस्तुधर्म इस प्रकार है, अतः किसी भी सांसारिक पदार्थ में सुख मानना अथवा इन्द्रियों के किसी भी विषय में स्थिरता मानना अयोग्य है, भूल है और आड़े रस्ते दोड़ना है । अब प्रश्न उठता है कि तो फिर क्या करना ? इस जीव के मुद के बो सहज धर्म हों उनको प्राप्त कर के उनमें जो लीन हो जाय तो परम सुख की प्राप्ति होगी तथा यह व्यर्थ अस्थिरता मिट जायगी, अतः दूसरी व्यर्थ बातों को छोड़ कर स्वगुण प्रगट करने निमित्त आत्मलय करना ही हमारा कर्तव्य है । आत्मलय करने निमित्त यम और नियम प्रबल साधन हैं । जब मन अमुक नियमों से नियंत्रित होकर कब्जे में आता है तब आत्मस्थिरता बहुत अंशों में प्राप्त होती जाती है और अभ्यास से यह बहुत अधिक अंश में प्राप्त होती जाती है सगे-स्नेहियों के अस्थिर सम्बन्ध और पौद्गलिक वस्तु पर के झूठे प्रेम को छोड़ कर, अपना खुद का क्या है इस के विचारने में और इसके ज्ञान होजाने पर इसके विशेष विकाश करने के कार्य में मग्न रहना समता प्राप्त करने का चोथा साधन है । पंडित पुरुष इसको 'आत्मलय' का सार्थ नाम देते हैं ।। २७॥ मरण पर विचार । ममत्व का वास्तविक स्वरूप. एष मे जनयिता जननीयं, बंधवः पुनरिमे स्वजनाश्च । द्रव्यमेतदिति जातममत्वो, नैव पश्यसि कृतांतवशत्वम् ॥२८॥ "यह मेरा पिता है, यह मेरी माता है, ये मेरे भाई हैं
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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