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________________ कर इन्द्रजाल बताते हैं । अखण्ड परिव्राजक का दृष्टान्त हमको भलिभांति मालूम होना चाहिये । वस्तुत: इस में सच्चाई का लेश मात्र भी नहीं है । " चार दहाडातुं चादरों घोर अंधेरो रात" स्वप्न अथवा इन्द्रजाल में देखे हुए पदार्थों की प्राप्ति अथवा नाश से हर्ष अथवा शोक करना मिथ्या है, उसी प्रकार सब सांसारिक पदार्थों के बारे में भी समझना । इस हकीकत को थोड़ी और स्पष्टतया समझें । हम को जब कोई हमारे अनुकूल पदार्थ मिलता है तो उस पर प्रीति हो जाती है, परन्तु राग से जो सुख होता है वह केवल माना हुमा ही है; वास्तविक नहीं । इसमें क्या सुख है ? यह सुख है किन्तु बहुत अल्पकाल तक रहनेवाला है। आखिरकार वास्तविक स्थिति तो अवश्य प्राप्त होगी ही। पौद्गलिक वस्तुओं की ऐसी रीति है कि जब तक एक वस्तु प्राप्त न हो तब तक तो उसमें बहुत प्रेम रहता है, परन्तु प्राप्त होने के पश्चात् थोड़े से समय में ही उसपर से मन हटजाता है। छोटी आयु में घड़ी मिलने की तथा मेले में जानेपर नवीन खिलोनों की जो इच्छा पालक में देखी जाती है वैसी इच्छा उन वस्तुओं के मिल जाने के दो चार दिवस बादं नहीं देखी जाती । इसी प्रकार अन्य सब वस्तुओं के लिये समझ लीजिये। उनमें आनन्द है ही नहीं और यदि है भी तो अल्पमात्र है । थोड़े समय तक रहनेवाला है और परिणाम में अधःपतन करनेवाला है । इसप्रकार वस्तुस्थिति है । संसार के सब पदार्थों तथा सम्बन्धों का स्वप्न में देखे हुए पदार्थों तथा इन्द्रनाल के साथ होनेवाली समानता बहुत मनन करने योग्य है, चमत्कारी है और विचार करने पर १ मुलसा चरित्र देखिये। .
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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