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________________ . वियोग प्रसंग से प्रमाण रहित और परिणाम रहित शोक न हो इस लिये यह उपदेश किया गया है। पितृ धर्मादि का जब विश्वप्राणी धर्म के साथ सम्बन्ध हो तब प्रथम धर्म का कदाच पालम करना पड़े तो भी सामान्य शिष्टाचार प्रमाणे अंत्य धर्म भादरना उचित है। इसका शुद्ध प्राशय यह है कि मोह में फँस कर प्रतिबंधन में न पड़ जाओ । इस विषय में चोयीं एकत्व भावना का विचार करना योग्य है । इस भावना का और इस श्लोक का उद्देश्य लगभग एकसा ही है। - चौपाई के बनानेवालेने इस श्लोक का अर्थ अन्य प्रकार से किया है, परन्तु वह अर्थ मूल के देखने से मुझे ठीक ठीक समझ न पड़ा । चौपाईकार के कहने का भावार्थ यह जान पड़ता है कि जिस प्रकार विद्वानों को तत्वज्ञान होने से सुख के लिये माने हुए माता, पिता, पुत्र, स्त्री आदि में वे लिप्त नहीं हो जाते वरन् निःसम्बन्ध रह कर आत्मा को निर्लेप रखते हैं, इसी प्रकार धनधान्यादि भी उनको लिप्त करनेवाले ( कर्मबन्धन करानेवाले) नहीं होते कारण कि उन की धारणा है कि अपना अपना पर्याय छोड़ कर द्रव्य भिन्न भिन्न पर्यायों में काम में आने से. दूसरा रूप धारण कर लेता है वरना वह सदा एकसा ही है ॥ २४.. समता को समझनेवालों की संख्या जानन्ति कामानिखिलाः ससंज्ञा, ।। अर्थ नराः केऽपि च केऽपि धर्मम् ॥ जैनं च केचिद् गुरुदेवशुद्धं, . केचित् शिवं केऽपि च केऽपि साम्यम् ॥२५॥ , केऽपि स्थाने कर्म इति पाठः क्वचिद् दृश्यते ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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