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________________ को अब तूं कब तक तेरा समझेगा ? तूं अब उन्मत्तपन छोड़ दे और इस बात को ध्यान में रख कि मोह का किया हुआ विभाग तेरा बहुत अहित करनेवाला है। इस मनुष्यभव में तुझे विचार करने का बहुत अवकाश है, कारण कि इसमें सेरी सर्व शक्तिएँ कम-ज्यादह अंशों में खिली हुई हैं। इस स्थिति का विचार करके तूं स्वपर सचमुच क्या है इसका विचार कर । इस भव में तुझे अवसर मिला है, उस का ठीक ठीक उपयोग कर ॥ २२ ॥ आत्मा और दूसरी वस्तुओं के सम्बन्ध में विचार अनादिरात्मा न निजः परो वा, ___ कस्यापि कश्चिन्न रिपुः सुहृद्धा। स्थिरा न देहाकृतयोऽणवश्च, तथापि साम्यं किमुपैषि नैषु ॥ २३ ॥ "आत्मा अनादि है, किसी के कोई खुद का नहीं और कोई पराया नहीं; कोई शत्रु नहीं और कोई मित्र नहीं; देह की आकृति और ( उस में रहनेवाले ) परमाणु स्थिर नहीं-तिस पर भी उनमें तू समता क्यों नहीं रखता ?" ॥ २३ ॥ उपजाति विवेचन:-आत्मा क्या है और कौन है, उसका विचार करने का तीसरा साध्य उपाय अब और विशेषरूप से स्पष्ट करते हैं। राग-द्वेषने स्वपर का विभाग खराब किया है यह ऊपर बताया गया है। अब आत्मा कौन है और इस
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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