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________________ पर उपेक्षा यह माध्यस्थ ( अथवा उदासीन ) भावना कहलाती है। " अनुष्टुपू. 1 कोई प्रपंचयुक्त करोड़ों रुपये विवेचन - संसार में अनेक प्रकार के विचित्र प्रकृतियाँ - वाले प्राणी होते हैं । कोई प्राणी निरंतर क्रूर कृत्य करने में ही आनंद मानते हैं, कोई असत्य भाषण कर दूसरों को कष्ट पहुंचाने में संतोष मानते हैं, कोई चोरी कर दूसरों के धन का हरण करते हैं, कोई अप्रमाणिक रूप से धन्य समय करते हैं, कोई पैसा एकत्रित करते हैं, कोई परस्त्री में आसक्त हो कर धन, शरीर और कीर्ति का नाश करते हैं, कोई क्रोध कर बारंबार आवेश में आजाते हैं, कोई जाति, कुल, बल, तप, ऐश्वर्य, विद्या आदि का अहंकार किया करते हैं, कार्य कर के शक्ति का दुरुपयोग करते हैं, कोई मिलने का प्रयास करते हैं, कोई दूसरों की निन्दा करते हैं; कोई धमाधम करने में आनन्द मानते हैं, कोई परजीव का विनाश कर नीच मनोविकारों की तृप्ति करते हैं, कोई देवगुरु की निन्दा में ही जीवन की सफलता समझते हैं । ऐसे ऐसे पापकृत्यों में आनन्द का उपभोग करनेवाले बहुत प्राणी देखने में आते हैं । संसार का स्वरूप थोड़ा समझा हो उन प्राणियों को ऐसे अधम प्रकृतिवाले पुरुषों पर थोड़ा या बहुत क्रोध आ ही जाता है, क्यों कि पाप तथा पापी सामान्य रूप से जनस मुदाय का तिरस्कार अपनी ओर खिच लेते हैं । जैनशास्त्रों का कथन है कि ऐसे प्राणियों की ओर भी क्रोध न करना चाहिये । सांसारिक स्वार्थ में भी क्रोध तो सर्वथा प्रकार क्रोध करना तो व्यर्थ है । हे माई • 1 1 ! त्याज्य है और इस तूं विचार कर कि
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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