SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ लाते हैं, उसके परिणामस्वरूप सुन्दर एवं विकार रहित सुख का उपभोग करते हैं " ऐसी बुद्धि से सुख मिलता है और उस के भी परिणामरूप सुन्दर सुख की प्राप्ति होती है। साधारण सुख तो क्षणिक और परिणाम में दुःखदायक होता है किन्तु यह तो परिणाम में भी सुन्दर है और इस सुख में किसी प्रकार का विकार भी नहीं होता। इस भावना पर बहुत विचार करने की आवश्यक्ता है । कितने ही पुरुष अपने भरणपोषण करने मात्र में ही अपने जीवन की सफलता समझते हैं परन्तु परोपकारी पुरुष कहते हैं कि पेट तो कौआ या ढोर भी भरते हैं। मनुष्य की सच्ची जीवन की उत्तमता तो इसमें हैं कि संसार के सर्व सबन्धों से थोड़े से उन्नत होने पर अपनेपन को भूल जाना और परोपकारपरायण जीवन बनाना । परोपकार की व्याख्या कम नहीं है क्योंकि यह मर्यादा रहित है । अपनी स्थिति, शक्ति, संयोग आदि के अनुसार दूसरों का उपकार करना परोपकार कहलाता हैं, यह करुणा भावना का मुख्य परिणाम है । इस भावना के होने से अनेक प्राणी संसारसमुद्र से तर गये हैं ऐसा शास्त्र में लिखा है और इतिहास में भी परोपकारी जीव के कई दृष्टान्त मिलते हैं। चौथी माध्यस्थ भावना का स्वरूप. क्रूरकर्मसु निःशंकं, देवतागुरुनिदिषु । आत्मशंसिषु योपेक्षा, तन्माध्यस्थ्यमुदीरितम् ॥१६॥ __“निशंक होकर क्रूर कर्म करनेवाले, देव और गुरु की निन्दा करनेवाले और भात्मश्लाघा करनेवाले प्राणियों
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy