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________________ ११७ श्रामण्योपनिषद् (परिशिष्ट-6 दशलक्षणधर्म-पूजा (पं. द्यानतराय) अडिल्ल उत्तम छिमा मारदव आरजव भाव हैं, सत्य सौच संयम तप त्याग उपाव हैं । आकिंचन ब्रह्मचरज धरम दस सार हैं, चहुँगति-दुख तें काढ़ि मुकति करतार हैं ॥ ॐ हीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ हीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । सोरठा हेमाचल की धार, मुनि-चित सम शीतल सुरभि । भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजौं सदा ॥ ॐ हीं उत्तमक्षमामार्दवार्जवसत्यशौचसंयमतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्येति दशलक्षणधर्माय जलं निर्वपामीति स्वाहा । चन्दन केशर गार, होय सुवास दशों दिशा । भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
SR No.022076
Book TitleShramanyopnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2010
Total Pages144
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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