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________________ ११६ श्रामण्योपनिषद् ब्रह्मचर्यधर्मः स्त्रीत्यक्तं त्रिजगत्पूज्यं ब्रह्मचर्यं गुणार्णवम् । पूजया परया भक्त्या पूजयामि तदाप्तये ॥१॥ ॐ ह्रीं परब्रह्मणे उत्तमब्रह्मचर्यधर्मांगाय नमः जलाद्ययँ निर्वपामीति स्वाहा। बंभव्वउ दुद्धरु धारिज्जइ वरु फेडिज्जइ विसयास णिरु । तिय-सुक्खइं रत्तउ मण-करि-मत्तउ तं जि भव्व रक्खेहु थिरु ॥२॥ चित्तभूमि मयणु जि उप्पज्जइ, तेण जि पीडिउ करइ अकज्जइ । तियहं सरीरइं जिंदई सेवइ, णिय-पर-णारि ण मूढउ वेयइ ॥३॥ णिवडइ णिरइ महादुह भुंजइ, जो हीणु जि बंभव्वउ भंजइ । इय जाणेप्पिणु मण-वय-काएं, बंभचेरु पालहु अणुराएं ॥४॥ तेण सहु जि लब्भइ भवपारउ, बंभय विणु वउ तउ जि असारउ। बंभव्वय विणु कायकिलेसो, विहल सयल भासियइ जिणेसो ॥५॥ बाहिर फरसिंदिय सुह रक्खर, परम बंभु आभिंतरि पेक्खउ। एण उवाएं लब्भइ सिव-हरु, इम रइधू बहु भणइ विणययरु ॥६॥ घत्ता जिणणाह महिज्जइ मुणि पणमिज्जइ दहलक्खणु पालियइ णिरु । भो खेमसीह-सुय भव्व विणयजुय होलुव मण इह करहु थिरु ॥७॥ ॐ हीं परब्रह्मणे उत्तमब्रह्मचर्यधर्मागाय पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा ।
SR No.022076
Book TitleShramanyopnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2010
Total Pages144
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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