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प्रस्तावना
कलिकाल सर्वज्ञ महान जैनाचार्य श्री हेमचन्द्र (वि० सं० ११४५ - १२२९) द्वारा संस्कृत में प्रणीत एवं स्वोपज्ञ वृत्ति युक्त राजनीति शास्त्र विषयक लघ्वर्हन्नीति का भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय संस्कृति मंदिर, दिल्ली तथा हेमचन्द्राचार्य जैन हस्तप्रत भण्डार, पाटण (गुजरात) में उपलब्ध देश में मात्र चार हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर परिशिष्टों सहित सम्पादित रूप व हिन्दी अनुवाद (मूल एवं वृत्ति) विद्वज्जगत् के समक्ष प्रस्तुत है ।
गुजरात के धन्धूका में वि० संवत् १९४५ में उत्पन्न श्री हेमचन्द्र मोढवंशीय चाचिग सेठ और पाहिनी की सन्तान थे। इनका बचपन का नाम चाङ्गदेव था । इनकी दीक्षा कोटिक गण में, बज्र शाखा में, चन्द्रगच्छ में श्रीदेवचन्द्रसूरि के समीप वि० सं० १९५० में हुई। इनका गुरु प्रदत्त नाम सोमचन्द्र था। दीक्षा के लगभग सोलह वर्ष पश्चात् ही विक्रम सं० १९६६ में इन्हें आचार्य पद प्रदान किया गया और उनका नाम हेमचन्द्र रख गया। अपने अगाध एवं व्यापक ज्ञान के कारण वे कलिकाल सर्वज्ञ नाम से प्रसिद्ध हुए। गुजरात के चौलुक्य राजाओं सिद्धराज जयसिंह एवं कुमारपाल पर इनका दूरगामी प्रभाव पड़ा। विशेषतः राजा कुमारपाल इनको गुरु मानते थे । इनके प्रतिबोध से उक्त राजा ने सप्त व्यसन त्याग किया एवं अमारि घोषणा के साथ अनेक जनहित के कार्य किये। पूर्व मध्यकाल में सांस्कृतिक उत्थान में इनका महती योगदान रहा। आचार्य हेमचन्द्र और राजा कुमारपाल का जीवन चरित्र पूर्व मध्यकालीन भारत के इतिहास में अद्वितीय स्थान रखता है।
कलिकालसर्वज्ञ ने प्रभूत साहित्य का प्रणयन किया । विविध विषयों पर मूल कृतियों के साथ अपवादस्वरूप एक-दो को छोड़कर सब पर स्वोपज्ञवृत्ति के रूप में विशाल व्याख्या साहित्य की सर्जना भी आप ने की। व्याकरण, कोश, काव्यशास्त्र, छन्दशास्त्र, दर्शन, काव्यसाहित्य, योग, स्तुति एवं स्तोत्र, राजनीतिशास्त्र जैसे विषयों पर बहुमूल्य ग्रन्थ आपने प्रसूत किये। इनकी कृतियों की सूची इस प्रकार है