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राजनीति शास्त्र का प्रतिपादन अनेक नामों से संस्कृत भाषा में होता रहा है। इसे दंडनीति, अर्थशास्त्र, शस्त्रविद्या, राज्यशास्त्र, राजधर्म, राजनीति, न्यायशास्त्र, नीतिशास्त्र आदि नामों से भी अभिहित किया गया है। इसमें सर्वाधिक प्रचलित
और स्वीकृत नाम दंडनीति एवं अर्थशास्त्र हैं। परवर्ती आचार्यों ने नीतिशास्त्र और न्यायशास्त्र शब्दों का भी प्रयोग किया है। इस क्रम में शुक्रनीति का नाम पर्याप्त प्रसिद्ध है। हेमचन्द्राचार्य ने प्रस्तुत रचना का नाम लध्वर्हन्नीति रखा। इसको पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि इसके पूर्व प्राकृत भाषा में निबद्ध नीतिशास्त्र का कोई विशाल ग्रन्थ उपलब्ध रहा होगा। उसी ग्रन्थ से सार ग्रहण कर आचार्य ने लघ्वर्हन्नीति का प्रणयन किया होगा। मूलग्रन्थ का उन्होंने वृहदहन्नीति के नाम से उल्लेख किया है। यह ग्रन्थ अभी अनुपलब्ध है। जैन परम्परा में इस विषय पर उपलब्ध दूसरी कृति सोमदेव सूरी का नीतिवाक्यम् है।
वैसे तो राजनीतिक विषय से सम्बद्ध ग्रन्थ होने के कारण इस रचना में राजा के गुणों का वर्णन, युद्ध के प्रकार, युद्ध की नीति, युद्ध के भेद आदि विषयों का वर्णन है ही लेकिन उसके अतिरिक्त व्यवहार अधिकार एवं प्रायश्चित्त अधिकार के माध्यम से सामाजिक एवं नैतिक सन्दर्भो को भी संकलित किया गया है। नीतिसम्पन्न राजा प्रजा के लिये हितकारी और समृद्धि का स्त्रोत होता है तो नैतिक मूल्यों का पालन करने वाली प्रजा देश की सुदृढ, सर्वांगीण सुखशान्ति का आधार होती है। इसलिए लघ्वर्हन्नीति में चार प्रकरणों में इन समस्त विषयों को समाहित किया गया है।
लघ्वर्हन्नीति का चार पाण्डुलिपियों के आधार पर डॉ० अशोक कुमार सिंह ने सुयोग्य सम्पादन किया है। नीतिशास्त्र के क्षेत्र में भारतीय चिन्तन एवं तत्सम्बन्धी मूल्यों को समझने में यह ग्रन्थ महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। इसके द्वारा भारतीय राजनीतिशास्त्र के विकास को समझने में भी सहायता मिलेगी। संस्कृत साहित्य एवं नीतिशास्त्र के अध्येताओं के समक्ष इस ग्रन्थ को प्रस्तुत करते हुए राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन भोगीलाल लहेर चन्द इन्स्टिच्यूट का आभार व्यक्त करता है जिनके वित्तीय अनुदान से सम्पादन एवं अनुवाद की यह परियोजना पूर्ण हो सकी। अप्रकाशित पाण्डुलिपियों को प्रकाश में लाने के लिए मिशन सतत् प्रयत्नशील है एवं भोगीलाल लहेर चन्द इन्स्टिच्यूट जैसी सारस्वत संस्थाओं से भविष्य में भी सहयोग की आशा रखता है। इस ग्रन्थ के शीघ्र एवं सुरुचिपूर्ण प्रकाशन में न्यू भारतीय बुक कॉरपोरेशन के सर्वेसर्वा श्री सुभाष जैन ने जो तत्परता और अभिरुचि दिखलायी है, वह अभिनन्दीय है। आशा है यह ग्रन्थ विद्वानों एवं शोधछात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। दिल्ली
दीप्ति शर्मा त्रिपाठी नववर्ष २०१३
निदेशक