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________________ व्यवहारविधिप्रकरणम् उभयोः साक्षिणो ग्राह्या निस्पृहाः शुद्धवंशजाः। देशकालविचारज्ञा अपोगण्डा निरन्वयाः॥४२॥ दोनों पक्ष के ऐसे साक्षी ग्रहण किये जाने चाहिए जो निस्पृह हों, जिनका वंश शुद्ध हो, जो देश और काल के विचार को जानने वाले हों, परिपक्व आयु वाले और तटस्थ हों। (वृ०) ते स्वग्रामजा भिन्नग्रामजा वा। या तो वे अपने ग्राम में उत्पन्न हों अथवा अन्य ग्राम में उत्पन्न हों। प्राड्विवाक एतेभ्यो यावन्निर्णयं वेतनं साक्ष्यैश्वर्यानुसारेणोभाभ्यां दापयेदिति। न्यायाधीश वादी और प्रतिवादी से साक्ष्य और ऐश्वर्य के अनुसार पूर्व निर्धारित वेतन साक्षियों को दिलवाये। अथ तत्कृत्यमुच्यते - इसके पश्चात् साक्षियों का कृत्य कहा जाता है - आगत्य साक्षिणो बूयुः साक्ष्यतां कृत्यसाधने। ... धर्मेण स्वस्वपक्षे च यथानीति द्वयोरपि॥४३॥ (वृ०) साक्षिण आगत्य पक्षद्वये साक्ष्यतां वक्तुमुद्युक्ता भवन्ति तदाप्राड्विवाको राज्य-प्रबन्धतया तान् भिन्नान्स्थापयित्वा स्वेष्टशपथादिनियमं च कारयित्वा साक्ष्यं गृह्णीयात्। जब दोनों पक्षों के साक्षी आकर साक्ष्य देने के लिए तैयार होते हैं तब न्यायाधीश राजकीय प्रबन्ध के अनुसार उनको अलग-अलग बैठाकर अपने इष्ट का शपथ आदि नियम कराकर साक्ष्य ग्रहण करे। आहूतान् साक्षिणः सर्वान्स्थापयेच्च पृथक् पृथक्। सभान्तोविदिताचारान्मंत्रीयाज्ञार्थ साधकान् ॥४४॥ कृतस्नानार्चनान्पूर्वं नियम्य शपथैर्नृपः। पृच्छेत्सत्कृत्य सम्बन्धं तत्कृत्ये च यथाविधि॥४५॥ (वादी तथा प्रतिवादी) दोनों पक्ष के साक्षी आकर कार्य के साधन में अपने-अपने पक्ष में धर्म और नीति के अनुसार साक्ष्य कहें। बुलाये गये (दोनों पक्षों के) सभी साक्षियों को अलग-अलग स्थापित करना चाहिए। (वे साक्षीगण) सभा में किये जाने वाले आचरण के ज्ञाता हों और मन्त्री की आज्ञा का (सही) १. मन्त्रीयज्ञार्थ भ १, भ २, मन्त्रीयज्ञार्प्य प १, मन्त्रीयज्ञार्ण्य भ २, प २॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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