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________________ ५४ सभा में सभ्य किस प्रकार के और कितने होते हैं, इसका कथन शत्रौ ' मित्रे समाः शान्ताः निस्पृहाः सत्यवादिनः । परलोकभयान्विताः ॥ ३८ ॥ श्रुताध्ययनसम्पन्नाः निःक्रोधाश्च निरालस्या धर्मज्ञाः कुलजाः सतः । पञ्चसप्ताथ भूपेन शुद्धाः कार्याः सभासदः ॥ ३९ ॥ शत्रु और मित्र में सम (भाव रखने वाला), शान्त, निस्पृह, सत्यवादी, शास्त्रज्ञ, परलोक से भय रखने वाला, क्रोधरहित, आलस्य रहित, धर्मज्ञ और कुलीन पाँच और सात व्यक्तियों को राजा द्वारा सभासद बनाना चाहिए। ( वृ०) एते सभ्याश्चेल्लोभादिहेतुभिः कृतमन्यथा कुर्वन्ति तदा दण्ड्याः स्युरित्याह ये सभासद यदि लोभ आदि कारणों से अन्याय करते हैं तो दण्डनीय हैं, इसका कथन - लघ्वनीति १. २. लोभाद्द्द्वेषाद्बृहन्मित्रकथनेन क्रुधान्यथा । कृतिं कुर्वन्ति ये सभ्या दण्ड्या भूपेन ते सदा ॥ ४० ॥ (राजा द्वारा नामित) जो सभासद लोभ, द्वेष, बड़े मित्र के कथन या क्रोध के कारण अन्याय करते हैं वे राजा के द्वारा सदा दण्ड के योग्य हैं। (वृ०) लोभादिहेतोरन्यथावादिभ्य एव दण्डग्रहणमुचितं पुनरज्ञानाद्विरुद्धवादिभ्यस्ते त्वयोग्यत्वेन सभातो निर्वास्या एवेति । लोभ आदि कारणों से अन्याय करने वाले सभासद ही दण्डनीय हैं पुनः अज्ञानादि के कारण तथ्य के विरुद्ध बोलने वालों को अयोग्य होने से सभा से निष्कासित कर देना चाहिए। ततस्तौ स्वस्वसाक्षिनामानि लिख्य भूपसदसि प्रवेशयेत् इत्याह पूर्व आज्ञा के अनुसार वादी और प्रतिवादी दोनों अपने-अपने साक्षियों का नाम लिखकर राजसभा में प्रवेश करें, इसका कथन - - श्रुत्वोभौ साधनाज्ञां तां स्वस्वपक्षसमर्थक । साक्षिनामानि संलिख्य स्थापयेत्तां पुरं प्रभोः ॥ ४१ ॥ सत्रौ भ १, भ २, प २ ॥ संलेख्य भ १, भ २ प १ प २ ॥ इस प्रकार दोनों (वादी और प्रतिवादी) के द्वारा साधन की आज्ञाओं को सुनकर अपने-अपने पक्ष के समर्थक साक्षियों के नाम लिखकर उसे प्रभु (न्यायाधीश) के समक्ष रखना चाहिये। न
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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