SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यवहारविधिप्रकरणम् . (वृ०) यथा शतमुद्रा एतस्माद्याचयामीत्यर्थिनोक्ते सत्यं दातव्याः सन्तीति सत्योत्तरं उदाहरणस्वरूप वादी द्वारा यह कहने पर कि इससे सौ रुपये माँगता हूँ (प्रतिवादी कहे कि) सत्य है मेरे द्वारा दिये जाने हैं - यह सत्य उत्तर है। अर्थिलेखकं दृष्ट्वा तद्विरुद्धधर्महेतुप्रतिपादनं प्रतिभूः ग्रामादिनामयुतं व्यापकं। वादी द्वारा लिखित आवेदन को देखकर उसके विरुद्ध धर्महेतु का प्रतिपादन प्रतिभू है। सत्यमेतावन्मुद्रतस्य दातव्या परं मयैतस्यैतत्कृत्यं कृतमस्तीत्यसन्दिग्धम्। सत्य है वादी के इतने रुपये देय हैं पर मेरे द्वारा इसका यह कार्य किया गया है - यह असन्दिग्ध उत्तर है। अश्राव्यं च पञ्चविधम् - अश्राव्य उत्तर के पाँच प्रकार - सन्दिग्धं प्रकृताद्भिन्नमत्यल्पमतिभूरि चार पक्षैकदेशव्याप्यं यच्छ्राव्यं नैवोत्तरं हि तत्॥३२॥ सन्दिग्ध, वास्तविक से भिन्न, अत्यल्प, अत्यधिक और पक्ष के एक देश में व्याप्त (ये पाँच प्रकार के उत्तर अश्राव्य हैं) अतः अधिकारियों द्वारा सुनने योग्य नहीं हैं। ___ (वृ०) यथा शतमुद्रा अनेन गृहीता इत्युक्ते सति शतमुद्रा वा शतपणा इति सन्दिग्धम्। उदाहरणस्वरूप इसने सौ मुद्राएं ग्रहण की हैं वादी के यह कहने पर प्रतिवादी का कहना कि सौ मुद्रा अथवा सौ रुपया, यह सन्दिग्ध उत्तर है। सुवर्णशताभियोगे पणशतं धारयामीतिप्रकृताद्भिन्नम्। सौ स्वर्णमुद्राओं का वाद होने पर मैंने तो सौ रुपये लिया है प्रतिवादी का उत्तर भिन्न है। सुवर्णशताभियोगे पञ्चैव धारयामीति अत्यल्पम्। सौ स्वर्णमुद्राओं का वाद होने पर मैंने तो पाँच ही लिया है प्रतिवादी का उत्तर अत्यल्प है। सुवर्णशताभियोगे सहस्रं धारयामीति अतिभूरि।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy