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________________ लघ्वर्हन्नीति श्रुतदेवीं सद्गुरूंश्च नतिर्मेऽस्तु मुहुर्मुहुः। यत्प्रसादसमुद्भूतो मयि बोधः प्रसर्पति॥५॥ देवी सरस्वती तथा सद्गुरु की मैं बारम्बार वन्दना करता हूँ जिनकी कृपा से उत्पन्न हुए ज्ञान का मुझमें प्रसार हो रहा है। कुमारपालक्ष्मापाला ग्रहेण पूर्वनिर्मितात्। अर्हन्नीत्यभिधात् शास्त्रात्सारमुद्धृत्य किञ्चन॥६॥ भूपप्रजाहितार्थं हि शीघ्रस्मृतिविधायकम्। लघ्वर्हन्नीतिसच्छास्त्रं सुखबोधं करोम्यहम्॥७॥ युग्मम्॥ __ चौलुक्य राजा कुमारपाल के आग्रह से पूर्व विरचित 'अर्हन्नीति' नामक शास्त्र से कुछ सार उद्धृत् कर निश्चय ही राजा और प्रजा के कल्याण के लिए शीघ्रता से स्मरण में आने वाले तथा सरलता से ज्ञान होने वाले उत्तम शास्त्र लघु-अर्हन्नीति की रचना करता हूँ। एकदा वीरभगवान् राजगृहपुराबहिः। उद्याने समवासार्षी गौतमादिवतीडितः॥८॥ एकबार गौतमादि मुनियों से पूजित भगवान् महावीर ने राजगृह नगर से बाहर उपवन में समवसरण किया। तदागमनवृत्तान्तं श्रुत्वा श्रेणिकभूमिराट्। जगाम वन्दितुं तूर्णं समुत्कः सपरिच्छदः॥९॥ उन (भगवान् महावीर) के आगमन का वृत्तान्त सुनकर राजा श्रेणिक अपने परिजनों सहित उत्सुकता से शीघ्र वन्दना हेतु गये। प्रणिपत्य जगन्नाथमुपविश्योचितस्थले। देशनान्ते चावसरं प्राप्य पप्रच्छ भूधनः॥१०॥ जगत् के स्वामी (भगवान् महावीर) की वन्दना कर उपयुक्त स्थान पर बैठकर प्रवचन के अन्त में अवसर पाकर राजा ने पूछा। राजप्रश्नाः पुरा स्वामिन् राजनीतिमार्गः केन प्रकाशितः। कतिभेदश्च किंरूपो जिज्ञासेति भृशं मम॥११॥ हे प्रभु! प्राचीन काल में राजनीति का मार्ग किसके द्वारा उद्घाटित किया १. ०पालग्रहेण भ २॥ समवासार्षी प॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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