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________________ ॥श्री गुरुभ्यो नमः॥ लघ्वहनीति प्रथम अधिकार भूपालादिगुणवर्णनम् श्रीमन्तं नाभिजं वन्दे प्रथमं तीर्थनायकम्। भूपं च योगिनं योग विल्लक्ष्यं रम्यविग्रहम्॥१॥ विभूति सम्पन्न, राजा नाभि के पुत्र प्रथम तीर्थङ्कर, प्रथम राजा, योगी और योगाभ्यासियों के ध्येय रूप सुन्दर शरीर वाले (श्री ऋषभदेव) की वन्दना करता देवाय नमस्तस्मै यस्माच्चरमशासनम्। प्रवृत्तमस्मिन् भरते संसारार्णवतारकम्॥२॥ संसार रूपी समुद्र को पार कराने वाले, इस भरत क्षेत्र में जिससे अन्तिम (जिन) शासन आरम्भ हुआ उस श्रेष्ठ देव (महावीर) का नमन करता हूँ। गणेशान् पुण्डरीकादीन् द्विपञ्चाब्धिरसामितान्। प्रणमामि त्रिधा भक्त्या प्रत्यूहोच्छित्तिकारकान्॥३॥ दो, पाँच, सात और नौ (२, ५, ७, ९) संख्या वाले, विघ्न का नाश करने वाले पुण्डरीक आदि गणधरों की त्रिविध (मन, वचन, काय) भक्ति से वन्दन करता हूँ। सुधर्मस्वामिनं स्तौमि पञ्चमं गणनायकम्। यदादिष्टगिरा सर्वं श्रुतं लोके प्रवर्तते॥४॥ जिसकी वाणी द्वारा प्ररूपित समस्त आगम शास्त्र लोक में प्रचलित हैं (महावीर के) उस पञ्चम गणधर सुधर्मा स्वामी की वन्दना करता हूँ। १. योगि० भ १, भ २, प १, प २।।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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