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________________ १८२ लघ्वर्हन्नीति मूल्य) का आधा, तीन बार (धुले वस्त्र के मूल्य) का चौथाई और चार बार (धुले वस्त्र के मूल्य) का उस (चौथाई) का आधा अर्थात् आठवाँ भाग और जीर्ण वस्त्र के नष्ट हो जाने पर स्वामी को कुछ भी प्राप्त न हो। (वृ०) निर्णेजकः शुचिकारः रजकश्च परकीयोत्तमवासांसि द्रव्यग्रहणार्थमाधिरूपतया स्थापयेत् तदा दशरजतदण्डः। यदि धुलाई करने वाला, स्वच्छ करने वाला धोबी दूसरे के उत्तम वस्त्रों को धन ग्रहण करने के लिए धरोहर रूप में रखता है तो उसका दण्ड दस रजत। अथवा विवाहाद्युत्सवे . कस्माच्चिद्रव्यं गृहीत्वोत्तमवस्त्रणि . परिधातुं ददाति चेदेकरजतदण्डः। अथवा विवाह आदि उत्सव में किसी से धन लेकर यदि उसे पहनने के लिए , उत्तम वस्त्र दे देता है तो एक रजत दण्ड। नूतननिह्नवे पुराणदाने च पञ्चरजतदण्डः। नये वस्त्र को छिपाकर पुराना देने पर पाँच रजत दण्ड। यदि रजकः प्रमादात् शर्करादृष्टाद्गणे वस्त्राणि धावमानो नाशयति तदा यथादोषं दण्डः। यदि धोबी असावधानीवश धोते हुए कङ्कड़ी अथवा शिला से वस्त्रों का नष्ट कर देता है तो दोष के अनुसार दण्ड देना चाहिए। __ यथाष्टरजतक्रीतस्य सकृद्धौतस्य वाससो नाशेऽष्टमभागानं सप्त रजतमौल्यं देयम्। जैसे आठ रजत में क्रय किये गये, एक बार धोये गये वस्त्र के नष्ट हो जाने पर आठवाँ भाग कम सात रजत मूल्य देना चाहिए। द्विोतस्य तदर्द दो बार धोये गये वस्त्र का उसका आधा (मूल्य देना चाहिए)। त्रिौतस्य तदर्द तीन बार धोये गये वस्त्र का उस का आधा (मूल्य देना चाहिए)। चतुर्भातस्य तदर्द चार बार धोये गये वस्त्र का उसका आधा (मूल्य देना चाहिए)। अर्द्ध नष्टे तदई वस्त्र के आधा नष्ट होने पर उसका आधा
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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