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________________ १७० लघ्वर्हन्नीति जड़ पदार्थों के द्वारा जो क्रीड़ा है उसे द्यूत कहा जाता है। जो क्रीड़ा सचेतन प्राणियों के माध्यम से होती है वह 'समाह्वय' अर्थात् जानवरों की लड़ाई पर शर्त लगाना, संज्ञा वाली है। (वृ०) इयं द्यूतक्रीडा राजनियमितसभिकस्थाने भवति इति सभिक आगतचतुवर्णीयजनान् मिष्टेष्टवचनैर्विश्वासयन्नशनादिभिश्च सन्तोषयन् रमयते सप्रतिबन्धकतयाप्रतिबन्धकतया वा त्वं शतमुद्रा जेष्यसि चेद् विंशतिमुद्रा अहं ग्रहीष्यामि इति सप्रतिबन्धकता अथवा यदा त्वं शतमुद्रा जेष्यसि तदा राजनियमितमुद्रापञ्चकं ग्रहीष्यामि इति अप्रतिबन्धकक्रीडा। यह द्यूतक्रीड़ा राजा द्वारा निर्धारित सभास्थान में होती है। सभास्थान में आये हुए चारों वर्गों के लोगों को मधुर और प्रिय वचनों से विश्वस्त करते हुए, भोजन आदि से सन्तुष्ट करते हुए प्रतिबन्ध सहित या बिना प्रतिबन्ध के द्यूत खिलाया जाता है। यदि तुम सौ मुद्रा जीतोगे तो बीस मुद्रा मैं लँगा इस प्रकार प्रतिबन्ध पूर्वक अथवा जब तुम सौ मुद्रा जीतोगे तब राजा द्वारा निश्चित पाँच मुद्रा ग्रहण करूँगा इस प्रकार प्रतिबन्ध रहित क्रीड़ा। सभा च राजानुमत्या स्वद्रव्यनिर्मापितद्यूतस्थानम्। राजा की अनुमति से अपने (व्यक्तिगत) धन से निर्माण किया गया द्यूत-क्रीड़ा स्थली सभा कही जाती है। राजद्रव्य निर्मापितस्थानं वा सा विद्यते यस्य स सभिकः। राजकीय धन से निर्माण कराई गई द्यूत-क्रीड़ा स्थली जिसकी होती है वह सभिक होता है। तदेव दर्शयति - वही वर्णित किया जाता है - स्वकीये राजकीये वा स्थाने आगतमानवान्। क्रीडयेदशनाद्यैश्च तोषयन्नभितो मुहुः॥४॥ अपने अथवा राजकीय स्थान में आये हुए व्यक्तियों को भोजन आदि से बार-बार सन्तुष्ट करते हुए द्यूत-क्रीड़ा करनी चाहिए। अन्योऽन्यकलहादेश्च रक्षयन् जितमानवान्। राज्यांशं च समुद्धृत्य स्वांशमादाय सर्वशः॥५॥ राज्यांशं तु प्रतिदिनं देयाद्राज्ये निरालसः। स्वांशेन स्वं कुटुम्बं' हि पालयेन्निरुपद्रवम्॥६॥ १. स्वकुटुंवं भ १, भ २, प २॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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