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________________ तृतीय अधिकार ___३.१५ द्यूतविधिप्रकरणम् नत्वारनाथं श्रीयुक्तमन्तरङ्गारिभेदकम्। व्यवहारपदं द्यूतमभिधास्ये यथागमम्॥१॥ ऐश्वर्यवान, आन्तरिक शत्रुओं का नाश करने वाले तीर्थङ्कर अरनाथ की वन्दना कर शास्त्रानुसार व्यवहार मार्ग द्यूत का प्रतिपादन करूँगा। (वृ०) पूर्वप्रकरणे स्त्रीग्रहो वर्णितस्ततो व्यसनसाहचर्याद् द्यूतमधुनाभिधीयते तत्र तावत् द्यूतस्वरूपमाह - पूर्व प्रकरण में स्त्रीग्रह दोष वर्णित है उस व्यसन के साथ द्यूत का साहचर्य होने से अब चूत का वर्णन किया जाता है। इसलिए द्यूत के स्वरूप का कथन - द्विपदापच्चतुष्पादखचरैर्देवनं हि यत्। . पणादि द्रव्यमुद्दिश्य तद् द्यूतमिति कथ्यते॥२॥ द्विपद (मल्ल आदि), अपद (पासा आदि), चतुष्पद (मेष, अश्व आदि), पक्षियों (मुर्गे, कबूतर आदि) के दाव से कौड़ियों या सिक्के (पण) आदि धन को लक्ष्य कर जो (क्रीड़ा होती है) उसे द्यूत कहा जाता है। (वृ०) तत्र द्विपदा मल्लादयः अपदाः पाशकबध्नादयश्चतुष्पदा मेषहयादयः खचराः पक्षिणः कुक्कुटतित्तिरपारावताद्यास्तैर्द्रव्यादिपणनिबन्धेन क्रीडा द्यूतम्॥ अत्रैवाभिधानव्यपदेशविषयविशेषमाह - उसमें दो पैर वाले मल्ल आदि, पैर रहित पाँसा, सीसा आदि, चार पैर वाले भेड़, घोड़े आदि, खचर अर्थात् मुर्गे, तित्तिर, कबूतर आदि पक्षियों के दाव से द्रव्य आदि धन से क्रीड़ा द्यूत है। यहाँ नाम-भेद के कथन से विषय-विशेष का कथन अचेतनैः क्रीडनं यत्तद्यूतमिति कथ्यते। सचेतनैस्तु या क्रीडा सा समाह्वयसंज्ञिका॥३॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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