SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निक्षेपप्रकरणम् १४७ निक्षेपापहृतिं कोंः समाधैः . शपथैर्नृपः। ... साक्ष्यादिशपथैर्वापि योऽसत्यस्तं तु दण्ड्येत्॥१७॥ सभी पापों के शपथपूर्वक अथवा साक्षी आदि की शपथपूर्वक जो न्यास को छिपा लेता है और जो झूठा है उसे राजा दण्डित करे। चेदसत्यं द्वयोर्वाक्यं राज्ञा दण्ड्यावुभावपि। यावन्निवेदितं स्वान्ताभिप्रायं तावता लघु॥१८॥ (वादी और प्रतिवादी) दोनों का कथन असत्य हो तो राजा द्वारा दोनों को दण्डित किया जाना चाहिए। यदि वे अपने अन्तःकरण से शीघ्र (यथार्थ) अभिप्राय सूचित न करें। निक्षिप्तं यो धनं ऋक्थी निह्नतेऽस्मान्महीधनः। 'गृहीत्वा षोडशांशं प्रागर्थिनं दापयेत्समम्॥१९॥ - धरोहर रखे हुए जिस धन को न्यास रखने वाला (यदि) छिपाता है तो राजा पहले उससे (न्यास का) सोलहवाँ भाग लेकर बाद में बराबर धन न्यास कर्ता को दिलाये। (वृ०) अर्थिकृताभियोगे यो व्ययोऽर्थिनः स्यात्स भूपेन प्रत्यर्थिनो अर्थिने दापयितव्य इत्याह - वादी द्वारा अभियोग चलाने में जो व्यय उसका हो वह राजा द्वारा प्रतिवादी से दिलवाना चाहिए, यह कथन - यो नियोगेऽर्थिनो जातो व्ययः प्रत्यर्थिनो नृपः। तद्रव्यं दापयेत्सर्वं लिखित्वा. जयपत्रके॥२०॥ . वाद में वादी का जो व्यय हुआ है राजा उस राशि को विजय प्रपत्र में अङ्कित कर प्रतिवादी से सम्पूर्ण राशि (वादी को) दिलवाये। (वृ०) अथोपनिधिहरणविषयमाह - उपनिधि अर्थात् धरोहर के हरण करने के विषय में कथन - कश्चिच्चोपनिधे हर्ता भूपेन यदि निश्चितः। दण्ड्यः स्याद्दापयित्वा प्राक् निक्षिप्तक्षेपकाय तम्॥२१॥ ....यदि राजा द्वारा उपनिधि के हरण करने वाले का निश्चय कर लिया गया हो तो पहले उस (न्यास कर्ता को) निक्षेप किया हुआ धन दिलवाकर तब दण्ड (राशि) ग्रहण करना चाहिए। १. ०च्चौपनिधे प १॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy